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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/९९

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उपदेश
 

सम्भव है, पर यह मेरे लिये असह्य है कि वह आठों पहर मेरे सिरपर सवार रहे । मुझे तो उन्माद हो जाय। माना कि उनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है, पर यह कदापि नहीं हो सकता कि उनके लिये मैं अपना जीवन नष्ट कर दूँ। बाबूलाल वन जानेकी क्षमता मुझमे नहीं है कि जिससे विचारे इस गाँवकी सीमासे बाहर नहीं जा सकते। मुझे ससारमे बहुत काम करना है, बहुत नाम करना है। ग्राम्य जीवन मेरे लिये प्रतिकूल ही नहीं, बल्कि प्राणघातक भी है।

यही सोचते हुए वह बंगलेपर पहुचे तो क्या देखते हैं कि कई कांस्टेबल बंगलेके बरामदेमें लेटे हुए हैं। मुख्तार साहब शर्माजीको देखते ही आगे बढकर बोले, हुजुर। बडे दारोगाजी छोटे दारोगाजीके साथ आये हैं। मैंने उनके लिये पलंग कमरेमें ही बिछवा दिये हैं। ये लोग जब इधर आ जाते हैं तो यहीं ठहरा करते हैं। देहातमे इनके योग्य स्थान और कहा हैं? अब मैं इनसे कैसे कहता कि कमरा खाली नहीं है। हुजूरका पलंग ऊपर विछवा दिया है।

शर्माजी अपने अन्य देश हितचिन्तक भाइयोंकी भांति पुलिसके घोर विरोधी थे। पुलिसवालोंके अत्याचारोंके कारण उन्हें बडी घृणाकी दृष्टिसे देखते थे। उनका सिद्धान्त था कि यदि पुलिसका आदमी प्याससे मर भी जाय तो उसे पानी न देना चाहिये। अपने कारिन्देसे यह समाचार सुनते ही उनके शरीरमें आग सी लग गयी। कारिन्देकी ओर लाल आँखोसे देखा और लपककर कमरेको योर चले, कि बेईमानोंका बोरिया