उन सारी निठुराइयों का प्रायश्चित्त करने आई हूँ। और सब चिन्ताओं से मुक्त होकर आई हूँ।
क्षमा काँप उठी। अंतस्तल की गहराइयों से एक लहर-सी उठती हुई जान पड़ी, जिसमें उसका अपना अतीत जीवन टूटी हुई नौकाओं की भांति उतराता हुआ दिखाई दिया। रूँधे हुए कण्ठ से बोली -- कुशल तो है बहन, इतनी जल्द तुम यहाँ फिर क्यों आ गई ? अभी तो तीन महीने भी नहीं हुए।
मृदुला मुसकिराई; पर उसकी मुसकिराहट में रुदन छिपा हुआ था। फिर बोली -- अब सब कुशल है बहन, सदा के लिए कुशल है। कोई चिन्ता ही नहीं रही। अब यहाँ जीवन-पर्यत रहने को तैयार हूँ। तुम्हारे स्नेह और कृपा का मूल्य अब समझ रही हूँ।
उसने एक ठंढी साँस ली और सजल नेत्रों से बोली -- तुम्हें बाहर की खबरें क्या मिली होंगी। परसों शहर में गोलियाँ चलीं। देहातों में आजकल संगीनों की नोक से लगान वसूल किया जा रहा है। किसानों के पास रुपए हैं नहीं, दें तो कहाँ से दें। अनाज का भाव दिन-दिन गिरता जाता है। पौने दो रुपए में मन भर गेहूँ आता है। मेरी उम्र ही अभी क्या है, अम्माजी भी कहती हैं कि अनाज इतना सस्ता कभी नहीं था। खेत की उपज से बीजों तक के दाम नहीं आते। मेहनत और सिंचाई इसके ऊपर। ग़रीब किसान लगान कहाँ से दें। उस पर सरकार का हुक्म है कि लगान कड़ाई के साथ वसूल किया जाय। किसान इस पर भी राज़ी हैं कि हमारी जमा-जत्था नीलाम कर लो, घर कुक कर लो, अपनी ज़मीन ले लो; मगर यहाँ तो अधिकारियों
को अपनी कारगुज़ारी दिखाने की फ़िक्र पड़ी हुई है। वह चाहे प्रजा को चक्की में पीस ही क्यों न डालें, सरकार उन्हें मना न करेगी। मैंने सुना है कि वह उलटे और शह देती है। सरकार को तो अपने कर से मतलब है। प्रजा मरे या जिये, उससे कोई प्रयोजन नहीं। अकसर ज़मींदारों ने तो लगान वसूल करने से इन्कार कर दिया है। अब पुलीस उनकी मदद पर भेजी गई है।
भैरोगंज का सारा इलाका लूटा जा रहा है। मरता क्या न करता, किसान भी घर-बार छोड़-छोड़कर भागे जा रहे हैं। एक किसान के घर में घुसकर कई कांसटेबलों ने उसे पीटना शुरू किया। बेचारा बैठा मार खाता रहा। उसकी