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समर-यात्रा
 


उछलता चला आता है, प्रसूति की बीमारी आँधी की तरह चढ़ी आती है,और हम हैं कि आखें बन्द किये खड़े हैं। बहुत जल्द ऋषियों की यह भूमि, यह वीर-प्रसविनी जननी, रसातल को चली जायगी, इसका कहीं निशान भी न रहेगा। गवर्नमेन्ट को क्या फ़िक्र। लोग कितने पाषाण हो गये हैं। आँखों के सामने यह अत्याचार देखते हैं और ज़रा भी नहीं चौंकते। यह मृत्यु का शैथिल्य है। यहाँ भी कानून की ज़रूरत है। एक ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे कोई स्त्री परदे में न रह सके। अब समय आ गया है कि इस विषय में सरकार क़दम बढ़ावे। क़ानून की मदद के बग़ैर कोई सुधार नहीं हो सकता, और यहाँ क़ानूनी मदद की जितनी ज़रूरत है, उतनी और कहाँ हो सकती है। माताओं पर देश का भविष्य अवलम्बित है। परदा-इटाव-बिल पेश होना चाहिए। जानता हूँ बड़ा विरोध होगा; लेकिन गवर्नमेंट को साहस से काम लेना चाहिए, ऐसे नपुंसक विरोध के भय से उद्धार के कार्य में बाधा नहीं पड़नी चाहिए। (काग़ज पर नोट करता है) यह बिल भी असेंबली खुलते ही पेश कर देना होगा। बहुत विलंब हो चुका, अब विलंब की गुंजाइश नहीं है, वरना मरीज़ का अंत हो जायगा।

(मसौदा बनाने लगता है-हेतु और उद्देश्य...)

( सहसा एक भिक्षुक सामने आकर पुकारता है-जय हो सरकार की,लक्ष्मी फूल-फूले,,..)

क़ानूनी-हट जाओ, यू सुअर, कोई काम क्यों नहीं करता ?

भिक्षुक-बड़ा धर्म होगा सरकार, मारे भूखों के आँखों तले अँधेरा...

क़ानूनी-चुप रहो सुअर, हट जाओ सामने से, अभी निकल जाओ,बहुत दूर निकल जाओ।

( मसौदा छोड़कर फिर आप ही आप)

यह ऋषियों की भूमि आज भिक्षुकों की भूमि हो रही है। जहाँ देखिए वहाँ खेड़-के-खेड़ और दल-के-दल भिखारी! यह गवर्नमेंट की लापरवाही की बरकत है। इगलैंड में कोई भिक्षुक भीख नहीं मांग सकता। पुलीस पकड़कर कालकोठरी में बंद कर दे। किसी सभ्य देश में इतने भिखमंगे