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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/३१

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पत्नी से पति
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अध्यात्म का यही आशय है कि परमात्मा के विधानों का विरोध किया जाय? जब यह मालूम है कि परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध एक पत्ती भी नहीं हिल सकती, तो यह कैसे मुमकिन है कि यह इतना बड़ा देश परमात्मा की मर्जी बग़ैर अँगरेज़ों के अधीन हो? क्यों इन दीवानों को इतनी अक्ल नहीं आती कि जब तक परमात्मा की इच्छा न होगी, कोई अँगरेज़ों का बाल भी बाँका न कर सकेगा।

गोदावरी––तो फिर क्यों नौकरी करते हो? परमात्मा की इच्छा होगी, तो आप ही आप भोजन मिल जायगा। बीमार होते हो, तो क्यों दौड़े वैद्य के घर जाते हो? परमात्मा उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी मदद आप करते हैं।

सेठ––बेशक करता है; लेकिन अपने घर में आग लगा देना, घर की चीज़ों को जला देना, ऐसे काम हैं, जिन्हें परमात्मा कभी पसन्द नहीं कर सकता।

गोदावरी––तो यहाँ के लोगों को चुपचाप बैठे रहना चाहिए?

सेठ––नहीं, रोना चाहिए। इस तरह रोना चाहिए, जैसे बच्चे माता के दूध के लिए रोते हैं।

सहसा होली जली, आग की शिखाएँ आसमान से बातें करने लगीं, मानो स्वाधीनता की देवी अग्नि-वस्त्र धारण किये हुए आकाश के देवताओं से गले मिलने जा रही हो।

दीनानाथ ने खिड़की बन्द कर दी, उनके लिए यह दृश्य भी असह्य था।

गोदावरी इस तरह खड़ी रही, जैसे कोई गाय कसाई के खूँटे पर खड़ी हो। उसी वक्त किसी के गाने की आवाज़ आई।

'वतन की देखिए तक़दीर कब बदलती है।'

गोदावरी के विषाद से भरे हुए हृदय में एक चोट लगी। उसने खिड़की खोल दी और नीचे की तरफ़ झाँका। होली अब भी जल रही थी और वहीं एक अन्धा लड़का अपनी खंजरी बजाकर गा रहा था––

'वतन की देखिए तक़दीर कब बदलती है।'