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समर-यात्रा
 


'मैं काँग्रेस के जलसे में जा रही हूँ।'

मिस्टर सेठ के ऊपर यदि छत गिर पड़ी होती या उन्होंने बिजली का तार हाथ से पकड़ लिया होता, तो भी वह इतने बदहवास न होते। आँखे फाड़कर बोले––तुम काँग्रेस के जलसे में जाओगी?

'हाँ, ज़रूर जाऊँगी।'

'मैं नहीं चाहता कि तुम वहाँ जाओ।'

'अगर तुम मेरी परवाह नहीं करते, तो मेरा धर्म नहीं कि तुम्हारी हरएक आज्ञा का पालन करूँ।'

मिस्टर सेठ ने आँखों में विष भरकर कहा––नतीजा बुरा होगा।

गोदावरी मानो तलवार के सामने छाती खोलकर बोली--इसकी चिन्ता नहीं, तुम किसी के ईश्वर नहीं हो।

मिस्टर सेठ खूब गर्म पड़े, धमकियाँ दीं, आख़िर मुँह फेरकर लेट रहे। प्रातःकाल फ़्लावर शो जाते समय भी उन्होंने गोदावरी से कुछ न कहा।

(३)

गोदावरी जिस समय कांग्रेस के जलसे में पहुँची, तो कई हज़ार मर्दों और औरतों का जमाव था। मन्त्री ने चन्दे की अपील की थी और कुछ लोग चन्दा दे रहे थे। गोदावरी उस जगह खड़ी हो गई जहाँ और स्त्रियाँ जमा थीं और देखने लगी कि लोग क्या चन्दा देते हैं। अधिकांश लोग दो-दो चार-चार आना ही दे रहे थे। वहाँ ऐसा धनवान था ही कौन। उसने अपनी जेब टटोली, तो एक रुपया निकला। उसने समझा यह काफ़ी है। इस इन्तज़ार में थी कि झोली सामने आये तो उसमें डाल दूँ। सहसा वही अंधा लड़का, जिसे उसने एक पैसा दिया था, न जाने किधर से आ गया और ज्यों ही चंदे की झोली उसके सामने पहुँची, उसने उसमें कुछ डाल दिया। सबकी आँखें उसकी तरफ़ उठ गई। सबको कुतूहल हो रहा था कि इस अंधे ने क्या दिया? कहीं एक-आध पैसा मिल गया होगा। दिन भर गला फाड़ता है, तब भी तो उस बेचारे को रोटी नहीं मिलती। अगर यही गाना पिश्वाज और साजके साथ किसी महफ़िल में होता, तो रूपये बरसते; लेकिन सड़क पर गानेवाले अंधे की कौन परवाह करता है।