सेठ ने इस तरह साहब की तरफ़ देखा, जैसे उनका मतलब नहीं समझे।
साहब ने फिर गरजकर कहा––तुम दग़ाबाज़ आदमी है।
मिस्टर सेठ का ख़ून गर्म हो उठा, बोले––मेरा तो ख़याल है कि मुझसे बड़ा राजभक्त इस देश में न होगा।
साहब––तुम नमकहराम आदमी है।
मिस्टर सेठ के चेहरे पर सुर्खी आई––आप व्यर्थ ही अपनी ज़बान ख़राब कर रहे हैं।
साहब––तुम शैतान आदमी है।
मिस्टर सेठ की आँखों में सुर्खी आई––आप मेरी बेइज़्ज़ती कर रहे हैं। ऐसी बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है।
साहब––चुप रहो, यू, ब्लैडी। तुमको सरकार पाँच सौ रुपये इसलिए नहीं देता कि तुम अपने वाइफ़ के हाथ से कांग्रेस का चन्दा दिलवाये। तुमको इसलिए सरकार रुपया नहीं देता।
मिस्टर सेठ को अब अपनी सफ़ाई देने का अवसर मिला। बोले––मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी वाइफ़ ने सरासर मेरी मर्जी के ख़िलाफ़ रुपये दिये हैं। मैं तो उस वक्त फ़्लावर शो देखने गया था, जहाँ मैंने मिस फ्रांक का गुलदस्ता पांच रुपये में लिया। वहाँ से लौटा, तो मुझे यह ख़बर मिली।
साहब––ओ! तुम हमको बेवकूफ़ बनाता है?
यह बात अग्नि-शिखा की भाँति ज्यों ही साहब के मस्तिष्क में घुसी, उनके मिजाज़ का पारा उबाल के दर्जे तक पहुँच गया। किसी हिन्दुस्तानी की इतनी मज़ाल कि उन्हें बेवकूफ़ बनाये। वह, जो हिन्दुस्तान के बादशाह हैं, जिनके पास बड़े-बड़े तालुकेदार सलाम करने आते हैं, जिनके नौकरों को बड़े-बड़े रईस नज़राना देते हैं। उन्हीं को कोई बेवकूफ़ बनाये। उसके लिए यह असह्य था। रूल उठाकर दौड़ा।
लेकिन मिस्टर सेठ भी मज़बूत आदमी थे। यों वह हर तरह की ख़ुशामद किया करते थे; लेकिन यह अपमान स्वीकार न कर सके। उन्होंने रूल