पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/५१

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लांछन
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जुगनू की नज़र पड़ जाय। पर किंग नशे में मस्त था। जुगनू की तरफ देखा ही नहीं।

मिस खुरशेद ने रोष के साथ अपने को अलग करके कहा---तुम इस वक्त श्रापे में नहीं हो। इतने उतावले क्यों हुए जाते हो। क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ।

किंग---इतने दिनों चोरों की तरह आया हूँ, आज से मैं खुले खजाने आऊँगा।

खुरशेद---तुम तो पागल हो रहे हो। देखते नहीं हो, कमरे में कौन बैठा हुआ है।

किंग ने हकबकाकर जुगनू की तरफ़ देखा और झिझककर बोला---यह बुढ़िया यहाँ कब आई। तुम यहाँ क्यों आई बुड्ढी! शैतान की बच्ची! यहाँ भेद लेने आती है। हमको बदनाम करना चाहती है। मैं तेरा गला घोट दूंँगा। ठहर, भागती कहाँ है। तुझे ज़िन्दा न छोडूगा !

जुगनू बिल्ली की तरह कमरे से निकली और सिर पर पांँव रखकर भागी। उधर कमरे से कह-कहे उठ-उठकर छत को हिलाने लगे।

जुगनू उसी वक्त मिसेज़ टण्डन के घर पहुँची। उसके पेट में बुलबुले उठ रहे थे ; पर मिसेज़ टण्डन सो गई थीं। वहां से निराश होकर उसने कई दूसरों के घरों की कुण्डी खटखटाई। पर कोई द्वार न खुला और दुखिया को सारी रात इस तरह काटनी पड़ी, मानो कोई रोता हुआ बच्चा गोद में हो। प्रातःकाल वह आश्रम में जा कूदी। कोई आध घंटे में मिसेज़ टण्डन भी आई। उन्हें देखकर उसने मुह फेर लिया।

मि० टण्डन ने पूछा---रात क्या तुम घर गई थीं ? इस वक्त मुझसे महाराज ने कहा।

जुगनू ने विरक्त भाव से कहा---प्यासा ही तो कुएं के पास जाता है। कुआँ थोड़े ही प्यासे के पास आता है। मुझे आग में झोंककर आप दूर हट गई। भगवान ने रक्षा की, नहीं कल जान ही गई थी।

मि० टण्डन ने उत्सुकता से कहा--क्यों, हुआ क्या, कुछ कहो तो। मुझे