( १८० ) सहायता देने की नीति का समर्थन इस कथित आधार पर किया गया है कि अब युद्ध सामाज्यवादी न होकर जनता का होगया हैं । यह सोचकर दुख होता है कि साम्यवादी पार्टियां अपने माने हुये सिद्धान्तों और कार्यों के प्रति झूठी सिद्ध हुई हैं। जिस उद्देश्य से लेनिन ने तृतीय इण्टरनेशनल की रचना की थी, वही ताक में रखा जा चुका है | तृतीय इण्टरनेशनल असफल हो चुकी है। इतिहास के साथ कोई भी अाँख मिचोनी नहीं खेल सकता युद्ध-जनित सफट ने उसके मुख के ऊपर का प्रावरण फाड़ डाला है और उसके सच्चे स्वरूप का दर्शन करा दिया है। हम साम्यवादियों के नवीन पक्ष की विस्तार से पर्यालोचना करेंगे और उन ऐतिहासिक कारणों को बताने का प्रयत्न करेंगे जिनसे प्रेरित होकर समार के साम्यवादी संकट के क्षण में अपने माने हुये सिद्धान्तों को छोड़ने और क्रान्तिकारी समाजवाद को देने को उद्यत हुए हैं । यह कार्य कितना भी अप्रिय हो, सत्य के हित में इसे ईमानदारी से करना ही पड़ेगा । साम्यवादी मानते हैं कि वर्तमान युग साम्राज्यवादी युग है। कल तक वे युद्ध का स्वरूप सामाज्यवादी बताते थे । यह रूस का मित्रराष्ट्रों की अोर सम्मिलित होना है जिसने उनके कथनानुसार युद्ध का स्वरूप बदल दिया है। अब वे कहते कि युद्ध फासिस्ट- विरोधी और जनता का वन गया है । हां वे अनिच्छापूर्वक यह अवश्य मानते हैं कि भारत में यह जनता का युद्ध नहीं हो पाया है, परन्तु साथ ही वे यह भी कहते हैं कि उसे बैसा बनाना का कर्तव्य है और उसके हाथ में है । वे अपन श्राशा उन तर्क जालों पर लगाते हैं, जिनसे उनकी समझ मे यह कार्य सिद्ध हो जायगा। जनता