पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२०९

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( १८२ ) दिया है कि रूस पितृभूमि की रक्षा के लिए एक राष्ट्रीय युद्ध लड़ रहा है । स्वतः वह मित्र राष्ट्रों के धनिक वर्ग और सरकारों में भय उत्पन्न करना नहीं चाहता, और इसी कारण से उसे उन आदशों को अलग रख देना पडता है जो अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध तय करने में समाजवादियों के कार्यकलाप के पथ प्रदर्शक होने चाहिए । इंगलैंड के साथ रूम की बुद्ध-मैत्री से इंगलैंड के युद्ध और शांति उद्देश्यों में तनिक भी परिवर्तन नहीं हुआ है, परन्तु फिर भी स्टालिन इंगलैंड और अारीका को एशिया के रक्षक और मुक्तिदाता वना कर उनकी सिफारिश करता है । वास्तव में सन्चाई यह है कि मित्र- राष्ट्रों में से प्रत्येक अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए लड़ रहा है । बड़ी शक्तियों के बीच में एक अाधुनिक युद्ध जनतन्त्र और फासिज्म के बीच लघर्ष का परिचायक नहीं बल्कि वसुधा के पुनविभाजन के निमित्त मामाज्यवादों के संघर्ष का द्योतक है । "वर्तमान युद्ध को लोकतन्त्र और फासिज्म की विचारधाराओं की टक्कर वताने के प्रयास प्रवंचना भरे और मूर्खतापूर्ण हैं । राज- नैतिक रूपान्तर होते रहते है, परन्तु पूँजीवादी भूल बनी रहती है।" यह युद्ध जर्मनी के विरुद्ध हैं, फासिज्म के विरुद्ध नहीं; क्योंकि सामाज्यवादी जनतन्त्र से अपने सजातीय फासेज्म की हत्या करने की अाशा नहीं की जा सकती। वर्तमान युद्ध का उद्देश्य सामाज्य- वाद को नट करना नहीं है, और इसलिए यह फासिज्म का विध्वंस नहीं कर सकता जो वस्तुतः सामाज्यवाद का बच्चा है। जब तक सामाज्यवाद का बोलबाला रहेगा तब तक फासिस्ट प्रतिक्रियावाद भी पनपता रहेगा। युद्धकाल में ये पूँजीवादी जनतन्त्र अधिका- धिक फासिज्म की ओर झुकते जायँगे । युद्ध की अावश्यकतायें उनके ऊपर एक सैनिक दृष्टिकोण की छाप लगा देंगी और अधिक तानाशाही प्रकार का बना देंगे। कहा जाता है कि