पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६९

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( २४२ ) करने के लिए प्रस्तुत रहेगा । उसमें घोषणा की गई है कि भारत स्वतन्त्र राष्ट्रों के संघ में सम्मिलित होगा और विश्व शांति में योग देगा। ८ अगस्त का प्रस्ताव युग की भावना के अनुरूप और समय की माँगों के अनुसार है । उसमें जनतन्त्र और अन्तर्राष्ट्रवाद का नाद है और जनसाधारण की सर्वोच्चता की घोषणा है । अाज उस प्रस्ताव को दुहराने की और उसके सब पहलुओं पर जोर देने की श्राव- श्यकता है । उसका प्रकाश हमारे सामने है; अन्य दिशाओं में हमें अपनी कार्य-शक्ति को व्यर्थ न गंवाना चाहिए । पाइए हम स्मरण- नीय दिवस पर उस प्रस्ताव को कार्यान्वित करने का पवित्र संकल्प करें। हमें याद रखना चाहिए कि सन् १६४२ के शहीदों का हमारे ऊपर जो ऋण है वह तभी चुक सकता है जब तक हम उस कार्य को पूरा करें जिसका उन्होंने शानदार श्रीगणेश किया था। हमें संगठन के महान कार्य में जुट जाना चाहिए, जिससे नियत समय पर हम अप्रस्तुत न पाए जाँय । हमें अपने सामने जो कार्य है उसका ज्ञान होना चाहिए, जिससे हम न केवल विदेशी सामाज्यवाद को ध्वस्त कर सकें, बल्कि प्रजातन्त्र, सहकारिता, आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय के ऊपर आधारित एक नवीन समाज व्यवस्था की स्थापना कर सकें।