पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५८

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हुआ था अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से, जिसका चुनाव सन् १९३१ में कांग्रेसियों की भाज की भावना का प्रतिनिधित्व करने की आशा नहीं की जा सकती । लेकिन मेरे विचार से हमारा यह हठ न्यायसंगत न होगा कि कौंसिल प्रवेश के प्रश्न पर सम्पूर्ण कांग्रेस के अधिवेशन में ही विचार किया जाय । यह तो मैं जानता हूँ कि कांग्रेस ही उस विषय में अन्तिम निर्णय कर सकती है । परन्तु क्या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को, काँग्रेस की सहमति की अपेक्षा गे, अस्थायी रूप से भी उसका निर्णय नहीं करने दिया आ सकता? स्वराज्य पार्टी परन्तु हमारे सामने मुख्य विचरणीय प्रश्न दूसरा है, और वह है स्वराज्यपार्टी की कांग्रेस से सम्बन्धित स्थिति का । क्या स्वराज्यपाटी कांग्रेस संगठन की एक स्वतन्त्र इकाई के रूप मे अलग संस्था होगो और कांग्रेस में एक स्वाधीन पार्लियामेण्टीय दल के रूप में कार्य करेगी, अथवा वह केवल कांग्रेसकार्य समिति की देख-रेख मे (जैसा उसके नेता चाहते हैं ) न रहकर सम्पूर्ण कांग्रेस के नियन्त्रण और अनुशासन में रहेगी ? मै इस सवाल पर मोटे तौर पर ही विचार करू गा ! मुझे हर है कि क्रांतिकारी आन्दोलन के स्वस्थ प्रभाव से रहित होकर स्वाधीन स्वराज्य संगठन कालान्तर मे एक पक्का विधानवादी और सुधारवादी दल बन आयगा और उसकी मनोवृत्ति कांग्रेस की क्रान्तिकारी नीति के बिलकुल विपरीत बन जायगी। यह याद रहे कि नई स्वराज्यपाटी ने जिस नीति को धूमिल-सी झाँकी दी है, वह उस स्वराज्यपार्टी की नीति से बिलकुल भिन्न है जिसके साथ श्रीयुत सी० आर० दास और पण्डित मोतीलाल नेहरू जैसो के पावन नाम जुड़े हुए है । उन महानुभावो ने तो धारा- सभाओं के भीतर से लगातार विरोध करने की नीति निर्धारित की थी