पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८०

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है। यदि हम इन दोनों संस्थानों के परस्पर पूरक स्वरूप का सतत ध्यान न रहावेंगे, तो अनेक प्रकार की भारी गलतियाँ हमसे होंगी। किसान सभानों का संगठन मुख्यतः कृपकों के आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए और उनके दिन प्रति दिन के आर्थिक संघों का संचालन करने के लिए है। परन्तु कृषकों को पीड़ा देने वाले औपनिवेशिक शोपण का अन्त तो पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने पर ही हो सकता है अतः जब तक भारत पराधीन है, तव तक यह आवश्यक है कि कृपक-वर्ग अन्य वगा के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वतत्रता प्राप्त करने का प्रयत्न करे। कांग्रेस-संगठन राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रतीक और साम्नाज्यवाद- विरोधी संघर्ष का साधन है। अतः कृषकों को उसे अपना ही समझ कर प्रेम करना चाहिये। उसके प्रति विमाता का सा व्यवहार करने से काम नहीं चलेगा। यदि राष्ट्रीय स्वातंत्र्य अान्दोलन का सामाजिक विस्तार करने के लिए ग्रार्थिक संघर्ष को राजनैतिक संघर्ष से जोड़ना है, तो यह उचित ही है कि इन दोनों संस्थानों को एक स्थायी सूत्र में बाँध दिया जाय । समय समय पर सन्देह और ईर्ष्या उत्पन्न होकर इनकी एकता को संकट में डाल देते हैं। दोनों ओर के अतिशय उत्साही व्यक्ति एक संकीर्ण संस्थावादी दृष्टिकोण लेकर और अपने परस्पर महत्व को न समझकर कठिनाई उपस्थित कर सकते हैं। प्रत्येक की ओर से चिढ़ाने वाली बातें होंगी जो दोनों में भेद डाल देंगी ; परन्तु यदि हम धैर्य से काम लें और सब मामलों पर शान्ति- पूर्धक और ठण्डे दिल से विचार करें तो हम छोटी मोटी अप्रिय बातों को सह लेंगे और उन्हें कठिनाई पैदा नहीं करने देंगे। कांग्रेस भी यह मानकर बुद्धिमत्ता का परिचय देगी कि किसान सभायें जमने के लिए ही बनी हैं अतः उनसे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध जोड़ना और उन्हें