पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८६

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दुर्भाग्य से कृषिकर्मी मजदूर दासता की दोहरी शृंखलाओं में जकड़ा हुअा है। भारत की अनोखी जाति व्यवस्था ने उसे सामाजिक श्रेणी में भी नीचे गिरा ग्यखा है | अतः हमें अस्पृश्यता निवारण के ममाज-सुधार आन्दोलन का स्वागत करना चाहिए । उमसे उसका मामाजिक दर्जा कुछ ऊँचा हो जायगा और उसके भीतर मनुष्य होने का ग्रात्मगौरव जाग जायगा। परन्तु जब तक उसके जीवन का भौतिक अवस्थाओं में तत्काल सुधार नहीं होता तब तक समाज-सुधार अान्दोलन, चाहे वह कितना भी हितकर हो, उसे समाज का एक श्रेष्ठ सदस्य बनाने में विशेष सहायक न होगा | ये उन कठिनाइयों में से कुछेक हैं जो अान्दोलन के विस्तार के के साथ साथ हमारे मार्ग में ग्राऐंगी . अतः एक किमान कार्यक्रम वनाने का प्रश्न भारी महत्व का है यह स्पष्ट है कि हमारा ध्येय मंपूर्ण कृषक समूह को साथ लेने का होना चाहिए । एक और उलझन इस तथ्य से उपस्थित होती है कि प्रान्त-प्रान्त में कृषकों की दशा भिन्न-भिन्न है । देश में कोई एक-मी भूमि व्यवस्था नहीं है। रैयतवारी प्रान्नों की समस्याएं जमींदारी प्रान्तों से भिन्न प्रकार की हैं । फिर लगान, पट्टे और राजस्व के विभिन्न प्रकारों से कृषक समस्या और भी पेचीदा बन गई है। अतः अखिल भारतीय संस्था अपनी प्रांतीय शाखाओं को अपने यहाँ कीअवस्थात्रों के उपयुक्त स्थानीय कार्यक्रम बना लेने की स्वतन्त्रता देकर, अपने कार्यक्रम में केवल अधिक महत्वपूर्ण बातों को ही ले सकती है। जैसे जैसे अान्दोलन बढ़ेगा नई समस्याएं उत्पन्न होगी और हमें उन पर ध्यान देकर परिवनिन परिस्थितियों के उपयुक्त अपने कार्यक्रम में सुधार करना पड़ेगा।