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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१०६

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पूंजी और उसका उपयोग

पूंजी और उसका उपयोग हम जानते है, रक्खा न रहेगा और जब खाना ही सड़ जायेगा तो यह अतिरिक्त रुपया किस काम शायगा ? हम जब यह जानेंगे कि रुपये का वास्तविक अर्थ है वे चीजें, जो रूपये के द्वारा खरीदी जा सकती है, और यह कि इनमें से ज्यादातर चीजें नाशवान हैं, तो हम समझ लेंगे कि अतिरिक्त रुपया बचाया नहीं जा सकता; वह तुरन्त खर्च किया जाना चाहिए। जो यह बात न जानते होंगे वे कहेंगे कि रुपया हमेशा रुपया ही रहता है; किंतु उनका यह नयाल ग़लत है। यह सही है कि सोने के सिक्कों का मूल्य हमेशा उसी धातु के बराबर होगा जिसके वे बने होंगे, किंतु थाजकल तो काग़जी रुपया बहुत चलता है जिसका मूल्य हमेशा उतना ही नहीं रहता । यूरोप में महायुद्ध के बाद काग़ज़ी सिक्का अधिक चला। इंग्लैण्ड में काग़ज़ी रुपये का मूल्य इतना घटा कि उमसे एक शिलिंग में उससे अधिक सामग्री नहीं खरीदी जा सकती थी जितनी युद्ध से पहिले ६ पैन्स में खरीदी जा सकती थी। यूरोप के कई अन्य देशों में हज़ारों पोएड देकर भी एक डाक का टिकट नहीं खरीदा जा सकता था और पचास हजार पौंड में मुश्किल से ट्रामभादा चुकाया जा सकता था। यूरोप भर में जो लोग अपने और अपने वचों के लिए श्रायु भर के लिए निश्चिन्तता अनुभव करते थे वे ही कंगाल होगए और इंग्लैण्ड में अपने पिताओं के चीमों पर पाराम से रहने वाले लोगों का मुश्किल से गुज़ारा होता था। रुपये में विश्वास रखने का यह परिणाम हुश्रा । एक ओर तो सरकारें थोये नोट (जिनके पीढ़े सोना या चाँदी नहीं रक्सा जाता था) छाप कर धोखे से लोगों का वचा हुश्रा रुपया छीन रही थीं, दूसरी ओर कितने ही धनी व्यवसायी उधार माल लेकर और उसका मूल्य उस मूल्यहीन रुपये में चुका कर धनी हो रहे थे। उन्होंने अपने स्वार्थ-साधन के लिए अपनी सारी सत्ता और अपना सारा प्रभाव इस दिशा में खर्च किया कि सरकारें अपने मूळे नोट छापना जारी रख कर अपनी हालत खराब-से-खाय कर लें। इसके विपरीत जिन धनी लोगों ने दूसरों को कर्ज दे रक्खा था उन्होंने प्रतिकूल दिशा में