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समाजवाद : पूँजीवाद


विकास हुआ था ये पूँँजीवाद के भयंकर परिणामों के बुरी नरह में शिकार हुए।

जिस पूँजी से इंग्लैण्ड की उत्पादक शक्ति यढाई जा सकनी थी, जिससे समाज के लिए फलंक रूप ग़रीय मुहल्लों के झोंपदों की हालन सुधारी जा सकती थी, उसके विदेश जाने से इंग्लैगढ में बेकारी की वृदि हुई, लोगों को विदेशों में जाना पड़ा और इंग्लैगढ को यदी-बडी जल और स्थल सेनायें रखनी पड़ी। उनके मुकाबिले के लिए दूसरों को भी भारी-भारी सेनायें रखनी पढी जिनमें अंग्रेजों को मदा भय रहता है। अंग्रेजी पूजी से विदेशों में उद्योगों का विकास किया गया है जिसमें इंग्लैण्ढ की स्वावलम्बन शक्ति नष्ट होती है। दक्षिण अमेरिका में रेले,साने, और कारखाने यनाने में अंग्रेज पूंजीपनियों ने जितना धन खर्च किया है यदि इसका थोडा हिस्सा भी उन्होंने इंग्लेगढ के प्राकृतिक वन्दरगाहों तक सड़कें बनाने में और रफाटलैगढ नया थायलैण्ढ के निरुपयोगी समुद्रतटों को उपयोगी बनाने में खर्च किया होता तो ब्रिटिश टापुओं के लोग येकारी से पीढिन न होने।

लोग कह सकते हैं कि ब्रिटिश टापुओं में इन भयंकर हानियों के होते हुए भी, उनकी जो पूँजी बाहर गई है उसका मुनाफा तो आता ही है जिससे उनके बाशिन्दों को काम मिलता है। जितना रुपया पूँजी के रूप में बाहर जाता है उससे अधिक रुपया निस्सन्देह उन टापुओं में मुनाफे के रूप में बाहर से आता है; किन्तु दूसरों के घम पर निर्वाह करना तो परोपजीची कंगाल होना है। यदि उन लोगों ने अपनी पूँँजी को विदेशों में न भेज कर स्वदेश में ही खर्च क्यिा होता तो उसमे उतनी ही आय होती जितनी कि विदेशों में होती है। यह हो सकता है कि पूँँजीपतियों को उसका उतना हिस्सा न मिल पाता।

इंग्लैण्ढ की पूँजी विदेशों में जाने से उनकी औधोगिक उत्पत्ति बढ़ती है जिसका परिणाम यह होता है कि इंग्लैण्ड का कोई कारखाना, खपत का बाज़ार उसके हाथ से निकल जाने से बन्द हो जाता है तो उसके मजदूर बेकार हो जाते है । वे उस अवस्था में विदेशों मे मुनाफा कमाने वाले