नमाजवाद : पूँजीवाद में सुन्दर स्त्रियों को रख कर उनकी वेश्यावृत्ति से अनुचित लाभ उठाते है। वे प्रायः इतना कम वेतन देते है जितने में उनकी सजावट होनी भी मुश्किल होती है। वे जब उनसे इसकी शिकायत करती हैं तो उन्हें कहा जाता है कि 'यदि तुम इतने में राजी नहीं हो तो तुम्हारी कितनी ही दूसरी वहनें इतने में राजी हो जायेंगी। यह क्या कम है कि हम तुम्हें ३० शिलिंग साप्ताहिक देते है और तुम्हारे सौन्दर्य का रंगमंच पर या सजे हुए होटलों में सुन्दरता के साथ प्रदर्शन कर देते हैं ? पूँजी और श्रम का संघर्ष हमने यह देखा कि इंग्लैण्ड में पहिले अकेले व्यक्ति से जब कहा जाता कि यदि वह नियत मज़दूरी पर काम नहीं कर सकता है तो उसके बजाय उसके दूसरे कितने ही भाई उसे करने वाले श्राजायेंगे, तो वह अपने मालिकों के खिलाफ कुल न कर सकता संघर्प का विकाम था। वह तब योग्य मज़दूरी और योग्य काम नहीं पा सकता था । योग्य मज़दूरी और योग्य काम पाने के लिए उसे अन्य मजदूरों के साथ मिल कर किसी-न-किसी प्रकार का संगठन बना कर प्रभावकारक ढंग से मालिकों का प्रतिरोध करने की आवश्यकता थी । कई व्यवसायों में यह वात असम्भव थी। कारण, उनमें काम करने वाले मजदूर एक-दूसरे को जानते न थे और एक स्थान पर इकठे होकर सामूहिक कार्रवाही करने के लिए सहमत होने के उनके पास साधन नहीं थे। उदाहरण के लिए घरेलू, नौकर अपना संघ नहीं स्थापित कर सकते थे। वे देश भर में काम करते थे और व्यक्तिगत रसोई-घरों में प्रायः कैद से रहते थे। वे अकेले या दो-दो तीन-तीन के समूहों में काम करते थे। अत्यधिक धनिकों के घरों में उनकी संख्या तोस या चालीस तक भी पहुँच जाती थी। इसी प्रकार खेतों में काम करने वाले मजदूर
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