पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१४०

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पूंजी और श्रम का संघर्ष १३३ जब मशीनों का उद्योगों में प्रवेश हुआ तो उतने ही समय में काम पहिले की अपेक्षा अधिक होने लगा । उदाहरण के लिए, यदि किसी नई मशीन पर काम करने वाले मजदूर पहिले से दूना काम कर सकते थे तो वे पहिले जितना बेनन श्राधा मास या श्राधा सप्ताह या प्राधा दिन काम करके ही कमा सक्ते थे और याक्रो श्राधे समय में छुट्टी मना मक्ते थे, यद्यपि घे शपने जीवन निर्वाह का मापदण्ड पहिले जितना ही रख सकते थे। किन्तु मालिक इसे पसन्द न करते थे। वे उनकी श्राधी मजदूरी काट कर उन्हें पूरे समय काम करने के लिए विवश करते थे । अर्थात् वे मशीन का लाभ पूरा-का-पूरा स्वयं ही उठाना चाहते थे। ___ संघर्ष का कारण यही था और अब भी यही कारण होता है। शुरू में तो मजदूरों ने मालिकों को धमकी दी कि यदि वे उनके वेतनी में कमी करेंगे और नई मशीन का लाभ उनको न देंगे तो वे नई मशीन को चलायेंगे ही नहीं। उन्होंने नई मशीनों के कारण दंगे किए और नई मशीनों के परिणाम-स्वरूप हड्ताले और ताले-घन्दियां हुई। मालिकों के भी संघ बने और उनके तथा व्यवसाय-संघो के मंत्रियों के बीच शान्ति- पूर्वक यातचीत होने लगी। यार-बार काम के हिसाब से मजदूरियाँ निश्चित की जाने लगी और परिणाम स्वरूप नई मगीनों का लाभ मजदूरों को भी मिलने लगा। किन्तु वह मशीनों के कारण होने वाली आश्चर्यजनक राष्ट्रीय उत्पत्ति को देखते हुए इतना कम है कि मालिकों के लाभ के मुकाबिले में वह नगण्य-सा है। इंग्लएड के व्यवसाय-संघ तेजी के समय हड़तालों से जो कुछ प्राप्त करते थे, मन्दी के समय तालेबन्दियों से वह दिन जाता था । अतः । उनको जल्दी ही यह अनुभव हुआ कि वे जो रियायत श्रम की विजय प्राप्त करते हैं उन्हें उनको कानून द्वारा स्थायी बना लेना चाहिए। उन्होंने देखा था कि पार्लमेल्ट ने छोटे बच्चों से कारखानों में काम लेना कानूनन बन्द कर दिया था ( यद्यपि उन्होंने दरिद्रता के कारण स्वयं उसका विरोध ही किया था।) इससे उनको यह विश्वास हो गया था कि यदि पार्लमेण्ट चाहे तो