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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१९

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समाजवाद : पूंजीवाद


तो बाँटना चाहिए । पहिले काम होगा तभी तो हमारे पास सम्पत्ति होगी। यदि किसान श्रम न करें तो हम क्या ग्याएंगे ? उन टापुओं की बात जाने दीजिए जिनमें स्त्री-पुरुष धूप में पड़े रहते हैं और बन्दरों द्वारा नोड़ कर नीचे ढाले हुए नारियलों पर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। किन्तु जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ यदि हम लोग निन्य श्रम न करें तो मुख्ने मर जाएंगे। एक व्यक्ति आलमी होगा तो वह अपने हिस्से का श्रम अन्य किसी से कराएगा। यदि दोनों में से कोई भी श्रम न करेगा तो दोनों ही भूखो मरेंगे । प्रकृति ने हम पर श्रम करने का भार ढाला है; इसलिए हमें सम्पत्ति की तरह श्रम का भी विभाजन करना पड़ेगा।

किन्तु यह आवश्यक नहीं कि सम्पत्ति और श्रम का विभाजन एक-सा हो । एक व्यक्ति अपनी निजी आवश्यकताओं की अपेक्षा अधिक कमा सकता है अन्यथा नाबालिग बच्चों को नहीं खिलाया जा सकता और जो वृद्ध और रोगी काम नहीं कर सकते वे भूखे मर सकते हैं । इस यंत्र-युग में श्रम का अच्छा संगठन करके एक व्यक्ति पहले की अपेक्षा मैंकड़ों गुना अधिक पैदा कर सकता है,इसलिए वह अपन श्रम से कई श्रम करने में असमर्थ व्यक्तियों का निर्बाह आसानी से कर सकता है

यंत्रों का प्राकृतिक शक्तियों जैसे वायु, जल और कोयलों में रहने चाली गर्मी के साथ संयोग करने से जो श्रम बचता है उससे मनुष्यों को अवकाश प्राप्त होता है । हमें इस अवकाश का भी विभाजन करना पड़ेगा । यदि एक आदमी दस घन्टे श्रम करके दस आदमियों का निर्वाह कर सकता है तो वे दसों आदमी इस अवकाश को कई तरह से विमा-जित कर सकते हैं। वे एक आदमी से दस घंटे काम लेकर शेप नौ को बिना श्रम भोजन,वस्त्र और पूरा आराम दे सकते हैं अथवा हर एक एक घंटा रोज़ काम करके नी घंटे अवकाश पा सकता है। वे ऐसा भी फर सकते हैं कि तीन आदमी काम करें और तीस के लिये निर्वाह सामग्री पैदा कर दें, ताकि अन्य सातों को कुछ भी न करना पड़े। वे चौदह जितना खा सकें; तेरह नौकरों को खिला सकें और शेष तीन को काम पर लगाये रख सकें।