सम्बन्धित देहातों में फैल जाता है। जब क्रान्ति-विरोधी विद्रोह शुरू
हुया तो किसानों ने यही समझा कि यह भूस्वामियों के पुनः लोट
भाने का प्रयत्न है । उनके लिए यह काफ़ी था । ट्राटस्की जोरदार वक्ता
और कुशल सेनापति के रूप में आगे आया। जब उसने क्रान्ति की
रक्षा के लिए सैनिकों की माँग की तो गाँव के गाँव उलट पड़े। घटस्की
इस हलचल का केन्द्रीय संचालक था । उसका युद्ध-कार्यालय एक रेख
के डिब्बे में था, जिस में वह अठारह महीने तक रहा । स्थानीय सेनापति
ट्राटस्की की शतरंज के खिलौने-मात्र न थे। खासकर स्वालिन विना
ट्राटस्की की योजनाओं की परवाह किये जो भी रास्ते में पाया, उससे
मिड़ पड़ा । उसको पीछे धकेलना मुश्किल था, क्योंकि उसे अपनी
लड़ाइयों में शानदार सफलता मिली थी। किन्तु अन्त में ट्राटस्की ने
लेनिन से कहा कि या तो मेरा प्रभाव रहे या स्टालिन का । लेनिन ने
बीच-बचाव किया, किन्तु यह घटना उल्लेखनीय है, क्योंकि यहीं से
ट्राटस्की और स्टालिन के बीच मत-भेद की शुरुवात होती है। बाद में
ट्राटस्की को निर्वासित होना पड़ा और उन पढ़यंत्रों का सूत्रपात
हुआ, जिनके फल-स्वरूप अनेक पुराने बोल्शेविको को फांसी दी गई।
___ अनेक अभूतपूर्व विघ्न-बाधाओं के होते हुए भी सोविएट की इतनी
गहरी विजय हुई कि जीवादियों को अपनी जिहाद छोड़नी पड़ी। हाँ,
उन्होंने निन्दा और ईया का अहिंसक व्यापार जारी रखा। इस
सम्बन्ध में सबसे घृणित घटना यह हुई कि रूस सहायक-संघ के लन्दन
दफ्तर में चोरी करवाई गई। इन सब कार्रवाइयों का रूस पर बहुत
ज़्यादा बोझ पड़ा । इसी समय वोला जिले में भयंकर दुष्काल पड़ा।
अन्य राष्ट्र रूस को रुपया देने को तैयार न थे, क्योंकि वे इसे अपने ही
विरुद्ध लड़ाई में सहायता देना समझते थे। इसके अलावा उस समय
रूस की साख भी कुछ नहीं समझी जाती थी । भावी पीढ़ी के लालन-
पालन और शिक्षा का बोझ सोविएट रूस ने दृढ़ता के साथ सहन
किया । यदि कोई पूँजीवादी देश होता तो सबसे पहले यही खर्च कम
किया जाता।
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समाजवाद:पूँजीवाद