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२०८
समाजवाद : पूँजीवाद

२०८ समाजवाद : पूजीवाद जेल में पहुँचा दे। इसके बाद उसकी सेना का जो मुख्य भाग बच रहता है, उसमें से कुछ को उसे नियमित पुलिस-दल में भर्ती कर लेना पड़ता है और शेप काम-धन्धों में लगा दिये जाते हैं। यदि फासिस्ट नेता व्यक्तिगत सम्पति और व्यक्तिगत मुनाफाखोरी को जड़-मूल से मिटाने की चेप्टा करे तो उसके बहुसंख्यक अनुयायी उसका हर्गिज समर्थन न करेंगे । अवश्य ही वह उनके अधीनस्थ उद्योग-धन्धों में अत्यधिक स्वार्थपरता पर थोड़ा प्रतिबन्ध लगा सकता है। वह छोटे कारखानेदारों को आधुनिक मशीनरी लगाने और बुद्धिसंगत तरीके काम में लाने के लिए विवश कर सकता है। इसमें उनको तो फायदा ही होता है। यदि वर्वाद होते हैं तो वही जो अत्यधिक गरीव होते हैं। फासिस्ट नेता छोटे कारखानेदारों को बड़े कारखानों में शामिल होने के लिए मजबूर कर सकता है, क्योंकि छोटे कारखानेदार बढे कारखानेदारों के धागे, जिनकी पूँजी करोड़ों रुपया होती है, ठहर नहीं सकते । वह फासिस्ट- विरोधी शक्तियों को भय दिखाकर एक बड़ी जल और थल सेना रखने के लिए उनके मुनाफों पर टैक्स लगा सकता है। वह उन्हें समझा सकता है कि मामूली आर्थिक सुधार व्यापारिक दृष्टि से भी लाभदायक है । वह उनको और उनके सम्मिलित व्यापारिक संघों को राष्ट्र के विधान • में भी स्थान दे सकता है; किन्तु वे इसे पसन्द न करेंगे और उस लीपा- पोती करने से आगे न बढ़ने देंगे। यदि फासिस्ट नेता समाजवाद की दिशा में इससे आगे बढ़ने की कोशिश करेगा तो वह क्रान्तिकारी या वोल्शेविक हो जायगा । फासिस्ट नेता के हाथ में सब से अधिक कारगर हथियार यह रहता है कि वह वोल्शेविकों से समाज की रक्षा करने आया है । वह चाहे जिस श्रमजीवी आन्दोलन को बोल्शेविक नाम दे सकता है । वह किसी भी सार्वजनिक काम को, यदि वह अपने अनुकूल हो तो फासिस्ट और अनुकूल न हो तो बोल्शेविक बता सकता है। किन्तु यदि वह समाजवाद की तरफ जरा भी पैर बढ़ाने का प्रयास करता है तो धनिक वर्ग के कान खड़े हो जाते हैं । कल्पना करो कि फासिस्ट नेता अपने देश की राजधानी