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रूसी साम्यवाद


राजा है, कौसिल है, सिनेट और धारासमा है, २१ वर्ष या इससे अधिक उन्न वाला व्यक्ति और यदि शादी शुदा हो तो १८ वर्ष की उन्न का व्यक्ति मत (वोट) दे सकता है। प्रान्तीय कौसिलें और स्थानीय म्युनिसिपैलिटियां भी हैं जो संयुक्त प्रान्तीय शासन-तंत्र के अधीन काम करती हैं। इस प्रकार वहाँ वे सब संस्थायें विद्यमान है, जिनसे लोग एक भर्से से परिचित है। राजा शून्य के बराबर है अथवा पार्लमैएट में फासिस्ट नेता ही सबकुछ है, इस बात से लोगों को कुछ मतलब नहीं होता। उनके लिए तो इतना ही काफी है कि पार्लमेण्ट का भवन बना हुआ है और उसमें समय-समय पर पार्लमेण्ट की बैठक हो जाती है। साधारणतः लोग परिवर्तन नहीं चाहते । जर्मनी में फासिस्ट क्रान्ति ने जो परिवर्तन क्येि, उनका लोगों ने इसलिए स्वागत किया कि सन् १८ की पराजय ने जर्मनी की दशा इतनी खराब कर दी थी कि उसको बर्दाश्त करना असम्भव था।

साम्यवाद और फासिस्टवाद दो विरोधी तत्व है, किन्तु यह ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ विषयों में दोनों का परिणाम एक-सा होता है। उदारवादी जिसे स्वतंत्रता और लोकतंत्र कहते हैं, उसका दोनों ही सफाया करते हैं। उदारवादियों के मतानुसार स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि राजकीय हस्तक्षेप न हो और लोकतंत्र का अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अमर्यादित राजनैतिक सामर्थ्य लेकर जन्म लेता है, जो न केवल अपना, बल्कि सारे देश का हित सोच सकता है, और छोटे-से-छोटे कर्मचारियों से लगाकर प्रधानमंत्री तक सबको चुनने की योग्यता रखता है। लोकतंत्र में सार्वजनिक मामलों का अन्तिम निर्णय मत गणना द्वारा किया जाता है। फासिस्ट नेता भी इस उपाय को पसन्द करते हैं। हिटलर इसका कई मर्तया आश्रय ले चुका है। स्वतंत्रता का शब्द सम्पत्ति के मालिकों की जवान पर हमेशा रहता है । जमीन और पॅजी का अधिकाँश भाग उनके कब्जे में होता है और वे उनका राष्ट्रीयकरण पसन्द नहीं करते। वे कहते हैं कि सरकार का जितना कम हस्तक्षेप होगा, उतने ही लोग स्वतंत्र होंगे। इस स्वतंत्रता के नाम पर पार्लमेण्ट में ऐसे लोग चुने