समाजवाद : पूँजीवाद जो कडी भूग्य और उंड से पीडित न हो धनियों से अधिक दुखी नहीं होते । बहुधा वे सुखी ही अधिक होते हैं। हमें ऐसे लोग आसानी से मिल सकते हैं जो वीस वर्ष की अवस्था की अपेक्षा साठ वर्ष की अवस्था में दस गुने अधिक धनी हो गए हैं; किन्तु उनमें से एक भी नहीं कह सकेगा कि उसके सुख की मात्रा भी इस गुनी बढ़ गई है। सभी विचार- शील लोग हमको विश्वास दिलाएंगे कि सुख-दुख मन और शरीर की स्थिति पर निर्भर करते हैं, रुपये के साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं है । रुपया भूख का इलाज कर सकता है; किन्तु दुख को दूर नहीं कर सकता। भोजन चुधा को मिटा सकता है; किन्तु पात्मा को सन्तोप नहीं दे सकता। प्रसिद्ध जर्मन समाजवादी फर्डिनैण्ड लासाले ने कहा है कि गरीबों को दरिद्रता के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उत्तेजन देने के मेरे प्रयत्र इसलिए सफल नहीं होते कि गरीब किसी बात की आवश्यकता ही अनुभव नहीं करते । अवश्य ही वे सन्तुष्ट नहीं है, किन्तु वे इतने असन्तुष्ट नहीं हैं कि अपनी स्थिति को बदलने के लिए भारी कष्ट उठाने को तैयार हो जाण । रहने के लिए पालीशान कोठी हो, इशारा पाते ही दौड़ने के लिए दस- वीस नाकर हों, पहिनने के लिए नित्य नये-नये वस्त्राभूपण मिलते ही और ग्वूव स्वादिष्ट पकवान खाने को मिले तो कौन ऐसा मन्दभागी धनी होगा जो अपने को सुखी न समझे ? किन्तु वात यह है कि धनी इन चीजों से भी श्रधा जाते हैं। सवेरे दिन चढ़े उठना, शौच जाने और मुखमार्जन करने से पहिले ही चाय पान करना, उवटन और स्नान, भोजन और श्राराम, हवारबोरी और रात के बारह बजे तक नाटक-सिनेमा में वक्त गुज़ार देना अधिक सुखी होने की निशानी नहीं है। पश्चिमी देशों में यदि गरीव औरत को एक बड़ा मकान, बहुत सारे नौकर, दर्जनों पोशाक, सुन्दर चेहरा और अच्छे बाल मिल जाएँ तो वह फूलीन समावेगी; किन्तु धनी महिला जिसको ये सब चीज़ उपलब्ध होती हैं, बहुधा उन चीज़ों से दूर रहने के लिए अपने समय का बड़ा भाग कष्टकर स्थानों में भ्रमण करने में विताती है। आम तौर पर एक नौकरानी की सहायता से नहाने-धोने, काँच-कंघी करने और बनने-ठनने में दिन के दो-तीन घंटे
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