बराबर वेतन देने से काम चल सकता है तो फिर जहाजी कप्तानों से न्यायाधीशों को पांच गुना अधिक क्यों दिया जाय ? यही तो जहाजी कप्तान जानना चाहेगा ! यदि उसे यह कह दिया जाय कि यदि न्यायाधीश के बराबर वेतन दिया जायगा तो भी वह साल खत्म होने से पेरतर उतना ही ग़रीब होगा जितना कि पहिले था, तो वह उत्तर में बहुत ही कटु और भद्दी भाषा का प्रयोग करेगा।
तो समान विभाजन केवल क्षण भर के लिए ही नहीं, बल्कि स्थायी तौर पर भी बिल्कुल सम्भव और व्यावहारिक है । वह सादा और समझ में आने योन्य भी है। वह मानव-प्राणियों में प्रचलित और सुविदित है। हरएक को किनना मिले, इस विषय के सब विवादों का भी वह खात्मा कर देता है।
समान आय में योग्य व्यक्तियों के लिए उनकी योग्यता के यथार्थ
प्रदर्शन का अधिक अवसर होता है, इसीलिए उन्हें उसके कारण उचित महत्व भी मिल जाता है। किन्तु प्राय की भिन्नता के कारण दो आदमियों की योग्यता का अन्तर जितना छिपता है उतना और
क्या योग्यता का किसी कारण से नहीं छिपता । उदाहरण के लिए एक खयाल नही कृतज्ञ राष्ट्र है जो किसी महान् अनवेषण,आविष्कर्ती, करेंग? या सेनापति को अपनी धारा-सभा द्वारा २० हजार रूपया देने का निश्चय करता है। पुरस्कार पाने वाला उसकी घोषणा सुनकर खुश होता हुआ अपने घर को जाता है, किन्तु बीच में ही उसे कोइ कुप्रसिद्ध मृर्ख, अथवा निन्दनीय विलासी या कोई साधारण चरित्र वाला मनुष्य मिल सकता है जिसके पास न केवल २० हजार रुपया ही हों, बल्कि जिसकी २० हजार रुपये की आय और हो। उस महान् व्यक्ति को २० हजार रुपये से वर्ष भर में केवल १ हजार रुपया ही प्राप्त होगा और इस कारण वह बेचारा समाज में व्यापारियों,धनपतियों और मिथ्याभिमानियों द्वारा भुक्कड ही सममा जायगा। इन धनपतियों के पास उसकी अपेक्षा कई गुना धन मिलेगा । कारण, उन्होंने पूर्णी स्वार्थपरता के साथ, सम्भवतः दुर्व्यसनों द्वारा या अपने देशवासियों की