समाजवाद : पूँजीवाद जबतक किसी देश में समाजवाद नहीं पा जातः तबतक व्यक्ति समाजवादी नहीं हो सकते । कारण, उन्हें असमाजवादी समाज में रहना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति समाजवाद के सिद्धान्तों को पढ़ कर अपनी संचित पूंजी को वाँट दे तो मौजूदा समाज जो समाजवाद पर समाजवाद पर आचरण नहीं करता है उसे ऐसा काम व्यक्तिगत देगा ही जिससे उसका भले प्रकार निर्वाह हो सके. आचरण इसकी कोई गारण्टी नहीं है । जबतक ऐसा है तबतक लोग पूंजी का संचय करेंगे ही। ईसामसीह ने कहा था कि 'तुमको अपने कल के भोजन-वस्त्र की चिन्ता न करनी चाहिए।' किन्तु श्राज हरएक ईमानदार समाजवादी जानता है कि इसका पालन स्तिना कठिन है । एक गृहत्य जिसको अपने परिवार के निर्वाह के लिए एक निश्चित रकम के लिए हर रोज पाठ या दस घन्टे काम करना पड़ता है यदि कल की चिन्ता न करेगा तो काम छूट जाने पर, बीमार हो जाने पर या अन्य किसी कारण से कमाने योग्य न रहने पर वह अपने परिवार का पोपण क्या भीख माँग कर करेगा ? फिर उसे यह भी खयाल रहता है कि यदि वह मर गया तो उसके परिवार की क्या दशा होगी। हरएक श्रादमी जबतक कि वह पहिले दर्जे का आस्तिक न हो, इस वस्तु-स्थिति से अपनी आँखें नहीं मूंद सकता। ___व्यवहार में समानता लानी चाहिए, यह ठीक है, किन्तु इससे हम यह नहीं कर सक्ते कि बाज़ार में जिनके पास अपने पास के रुपये से अधिक रुपया हो उनको लूट लेना चाहिए और उनको बाँट देना चाहिए जिनके पास हम से कम है। यदि हम ऐसा करेंगे तो इसमें कोई शक नहीं कि या तो हमें उसके लिए जेलखाने की हवा खानी पड़ेगी या पागलखाने की सैर करनी होगी। कारण, कुछ काम ऐसे हैं जिनको कानून द्वारा सरकार ही कर सकती है, जिन्हें व्यक्तिशः करने की छुट्टी किसी को नहीं दी जा सकती। राउनैतिक दृष्टि से सभ्य लोगों को पहिली बात यह सीखनी चाहिए कि वे कानून को हाथ में न लें। समाजवाद शुरू से लेकर अन्त तक
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