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समाजवाद और पूँजीवाद का अन्तर


यह सिद्धान्त मैन्चेस्टर के विचारकों का सिद्धान्त' कहा जाता था किन्तु पीछे जब यह नाम बदनाम हो गया तो उसे पूंजीवाद कहा जाने लगा।

पूंजीवाद में सरकार का कर्तव्य होता है कि वह जमीन पर और पंजी पर व्यक्तियों का अधिकार बनाये रक्खे तथा व्यक्तियों के स्वार्थों के पक्ष में व्यक्तियों ने आपस में जो भी इकरार कर रक्खे हों उनका पालन अपने पुलिस, जेल और कचहरी आदि महकमों द्वारा कराये। इसके सिवा सरकार को देश में शान्ति बनाये रखने के लिए तथा बाहरी देशों पर आक्रमण करने के लिए जल तथा स्थल की सेनायें भी रखनी ही चाहिएं।

समाजवाद में, इसके विपरीत, पाय की समानता बनाये रखना सरकार का पहिला कर्तव्य है। समाजवादी पद्धति के अनुसार सम्पत्ति पर किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत अधिकार नहीं होना चाहिए और न व्यक्तिगत के बीच होने वाले समझौतों का पालन व्यक्तियों के स्वार्थ पूरे करने की दृष्टि से होना चाहिए। उसके अनुसार राष्ट्र-हित का स्थान पहिला है। समाजवाद में यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता कि एक मनुष्य तो पतनकारी दरिद्रता में अति श्रम करते-करते अकाल में ही काल-कवलित हो जाय और दूसरा उसके श्रम के फल को पडा-पड़ा खाता रहे ! यह विल्कुल सही है कि समाजवाद में ऐसे अनर्थ न होने दिए जायंगे।

सम्पत्ति पर व्यक्तियों का अधिकार दो रूपो में होता है या यों कहना चाहिए कि सम्पत्ति दो प्रकार की होती है। एक तो वह सम्पत्ति जिसका व्यक्ति निजी कामों में उपयोग करते हैं जैसे कोट, जूता, छाता, खाना, थोड़ा पैसा आदि और दूसरी सम्पत्ति वह होती है जिससे ये चीजें खरीदी जाती हैं जैसे अधिक धन, जमीन, कारखाने आदि । पहिली सम्पत्ति को हम सुविधा के लिए साधारण सम्पत्ति कह सकते हैं और दूसरी को विशेष सम्पत्ति । समाजवाद में साधारण सम्पत्ति में वृद्धि होगी, ऐसी आशा की जाती है, किन्तु उसमें विशेष सम्पत्ति, जो असली सम्पत्ति है,