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समाजवाद:पूंजीवाद

समाजवाद : पूंजीवाद लोग म्यूनिसिपल करों के बारे में बन चल-चाल करते हैं । कारण, उनके बदले में प्रत्यनतः उनको कुछ नहीं मिलना और जो मिलता है उसका वे और सब लोगों के साथ उपभोग करने हैं जिससे उसके ऊपर उन्हें अपने कपड़ी, मकानां नया अपनी अन्य चीजों सरकारी कगेम की तरह अपने निजी न्यामिन्य का अनुभव नहीं होता । किन्नु यदि मढक कुटी हुई न हों, उन पर रोशनी और पुलिस का प्रयन्ध न हो, जल पहुंचाने नया मोरियों की च्यवस्था नधा दूसरे सेवा-साधन न हो तो ये बहुत समय तक अपने कपदों, मकानों तथा अपनी अन्य चीजों का निश्चिन्ततापूर्वक उपयोगन कर म। इन सारी चीज़ों की व्यवस्था उनी रूपये मे नोटोती है जिसे हम म्यूनिसिपल करों के रूप में देते हैं । यह जान कर हरएक समझदार प्रादमी कडेगा कि जितना रुपया वह पर्च करता है उसमें सबसे अधिक प्रनिपल उसको इस रुपये का ही मिलता है । म्यूनिसिपलिटी उसमे उतना ही म्पया लेती है जितना कि यह वास्तव में इन सार्वजनिक सेवा-माधनों पर खर्च करती है। वह उससे कोई मुनाफा नहीं उठानी। राजकीय करों के पत्र में भी इसी लाभ का दावा किया जा सकता है। जिन सार्वजनिक सेवायों के लिए हम करों के कप में पैसा देते हैं उन सब के लिए यह कहा जा सकता है कि उनमें प्रत्यत गति में कोई मुनाफ़ा नहीं उठाया जाता । जो पर्च सरकार को पड़ता है उसी पर ये हमें मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में. यदि वे निजी स्र्पोनयों के द्वाय में होती तो उस समय हम को जितना देना पड़ता उसमे यह यहुत कम है। किन्तु वास्तविकता यह है कि पूंजीवाद में हम जिस प्रकार सफलता- पूर्वक दूकानदारी में लूटे जाते हैं उसी प्रकार सफलतापूर्वक म्यूनिसिपल और राजकीय करों में भी लूटे जाते हैं। सरकार और स्थानीय अधिकारियों को अपनी सार्वजनिक व्यवस्था चलाने के लिए निजी मुनाफाखोरों से बहुत बड़े परिमाण में माल खरीदना पड़ता है जो लागत मूल्य से अधिक क्रीमत वसूल करते हैं। इस तरह जो अतिरिक्त मूल्य देना पड़ता है वह राजकीय और म्यूनिसिपल करदाताओं की हैसियत से हम से ही वसूल