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समालोचना-समुच्चय

चुका है। सम्पादकों का किया हुआ अंगरखे का लक्षण बङ्गाल के लिए ही ठीक हो सकता है। सारे भारत या हिन्दीभाषाभाषी लोगों के लिये नहीं। बंगला-विश्वकोष की नकल समझ बूझ कर करनी चाहिए।

हिन्दी-विश्वकोष के पहले खण्ड में अनेक ऐसे शब्द हैं जिन्हें हमने न तो कभी किसी पुस्तक में देखा और न कभी किसी के मुँह से ही सुना। उदाहरण के लिए―तेतुआ, अऊत, अऊलना, अंकटा, अंकटी आदि। यदि ये शब्द किसी लेखक की पुस्तक में प्रयुक्त हुए हैं तो उसका प्रमाण देना चाहिए था। यदि ये किसी प्रान्त के गँवारू शब्द हैं तो उस प्रान्त का नाम देना चाहिए था। यदि इनका सम्बन्ध बङ्गभाषा या उसकी किसी प्रान्तिक बोली से है तो वैसा लिख देना था। इनको इस कोष में देखकर यदि कोई इस तरफ़ इनका व्यवहार करने लगे तो इनका मतलब समझेगा कौन? यह स्वल्प लेख हम देहात में बैठे हुए लिख रहे हैं। बँगला-विश्वकोष यहाँ पर हमें देखने को नहीं मिल सकता। अतएव हम नहीं कह सकते कि इस हिन्दी-कोष में बँगला-संस्करण का कहाँ तक अनुसरण किया गया है।

अकरास-शब्द का अर्थ लिखा गया है―

“अगड़ाना। देह का टूटना। आलस्य । सुस्ती।" परन्तु अवध-प्रान्त में इसका सब से प्रसिद्ध अर्थ है―तकलीफ या कष्ट। जो अर्थ सम्पादकों ने इस शब्द के दिये हैं वे, नहीं मालूम, किस प्रान्त में प्रसिद्ध हैं।

प्रूफ-संशोधन में भी भूलें रह गई हैं। पृष्ठ ३ पर “अउ" शब्द के सामने छपा है―“इसकी योजना पथ में ही होती है।" यहाँ पर