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समालोचना-समुच्चय


इलहाम कहते हैं x x x मूल पुरुषों को सूक्ष्म ज्ञान सिखाने और वह ज्ञान औरों में फैलाने के लिए उनको परमात्मा ने भाषा अवश्य दी"।

क्योंकि―

“जिस प्रकार बिना भाषा के सूक्ष्म ज्ञान नहीं सिखलाया जा सकता उसी प्रकार बिना किसी भाषा के भाषा भी तो नहीं सिखलाई जा सकती"।

लेखक महाशय का कहना है कि ईश्वर ने हिमालय पर मनुष्यों की आदि-सृष्टि करके उन्हें सूक्ष्म से भी सूक्ष्म ज्ञान-प्राप्ति का साधन दे दिया और उन्हें भाषा भी सिखला दी।

पुस्तककार का मत है कि―"ज्ञान की सीमा बहुत लम्बी चौड़ी है, तथापि हम ज्ञान के सबसे बड़े छः विभाग करते हैं"। वे विभाग, कुछ कुछ ग्रन्थकार ही के शब्दों में, ये हैं―

( १ ) ज्योतिष और भूगोल-शास्त्र।

( २ ) वैद्यक-शास्त्र।

( ३ ) राजनीति और समाज-नीति।

( ४ ) धर्म शास्त्र।

( ५ ) रड़्ग और मणि-मुक्ता तथा नौका-शास्त्र।

( ६ ) जीव, ब्रह्म, प्रकृति, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नर्क (नरक), मोक्ष आदि और योगादि गुप्त-क्रियाओं और शक्तियों का शास्त्र।

यह सारा शास्त्रज्ञान ईश्वर ही की कृपा से आर्यों के आदिम पूर्वजों को मिला और उन्हीं के जन्मस्थान से अन्यत्र फैला। आपका मत है कि “उक्त समस्त विद्यायें आर्यों ही की ‘आविष्कार' की हुई हैं"। इससे―“यह बात निर्विवाद है कि जगत् भर की भाषा आर्यों ही की भाषा का अपभ्रंश है, क्योंकि विद्या बिना