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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१४१

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ओंकार-महिमा-प्रकाश

ओंकार-महिमा-प्रकाश

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रतलाम-निवासी पण्डित श्रीनिवास महादेव शर्मा ने इसकी रचना की है। इसमें ऊँकार की महिमा का वर्णन है। दिखलाया गया है कि संसार में जो कुछ है सो ऊँ ही है। इसीसे ब्रह्माण्ड के समस्त पदार्थ उत्पन्न हुए हैं। ऊँ जिस परब्रह्म परमात्मा का वाचक है उससे नहीं; किन्तु नागरी लिपिमें लिखे हुए 'ऊँ' शब्द से। इस शब्द से इतना बड़ा ब्रह्माण्ड और उसके अनन्त पदार्थ कब और किस तरह उत्पन्न हुए---इसका आपने विवेचन नहीं किया। केवल इतना ही नहीं, आपने यह भी दिखलाया है कि संसार की सारी लिपियाँ ऊँ ही से बनी हैं। इनमें अँगरेज़ी, फारसी, गुज़राती और नागरी अक्षर ऊँ से किस तरह बने हैं, इसके नमूने भी आपने दिये हैं। पर जैसे ऊँ शब्द के पाठ टुकड़ों से सब अक्षर निकले हुए आपने बताये हैं वैसे ही किसी अन्य शब्द के उन्हीं अाठ या न्यूनाधिक टेढ़े मेढ़े टुकड़ों से दुनिया को सब लिपियाँ निकली हुई सिद्ध करदी जाँय तो? पर कितने आदमी ऐसे हैं जो इस बात को मान लें?

लेखक के कथनानुसार इस पुस्तक से दो लाभ हो सकते हैं। एक तो यह कि इसके पढ़ने से लोगों का विश्वास सनातन-धर्म पर जम जायगा और उनके मन में धर्माङ्कुर उत्पन्न होगा। दूसरा यह कि इसके द्वारा बालक वर्णमाला लिखना पढ़ना सुगमता से सीख सकेंगे। पहले लाभ के विषय में यह वक्तव्य है कि सिर्फ इतना कह देने से कि---ए, बी, सी, डी, और अलिफ़, बे आदि ऊँ ही से उत्पन्न हुए हैं---लोगों के मन में धर्माङ्कुर कैसे उत्पन्न हो सकता है? जो लोग ऐसी बातों पर पहले ही से विश्वास रखते