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समालोचना-समुच्चय

सकें तो उनकी उस शिक्षा से उन्हें बहुत ही कम लाभ हुआ सम- झिए। जो लोग प्राइमरी मदरसों में भाषा-सम्बन्धी एकाकार करने के सब से बड़े पक्षपाती हैं वे भी, आशा है, इस बात को स्वीकार करेंगे। पिगट साहब की राय का सारांश यही है।

नैनीतालवाली कमिटी के विषय में भारतमित्र, अपने २० नवम्बर के अङ्क में, लिखता है---

"मालूम नहीं सरकार की उस कमिटी का क्या हुआ। यदि उसने अपनी रिपोर्ट पेश की हो तो सरकार को अपनी राय के साथ वह बिना विलम्ब प्रकाशित करनी चाहिए।"

इस पर हमारा निवेदन है कि सरकार को राय तो अभी तक हमारे देखने में नहीं आई, पर कमिटी की रिपोर्ट प्रकाशित हुए दो महीने हो चुके। उसी रिपोर्ट के प्रकाशन से हमें इस ब्राकेटबन्दी का ज्ञान हुआ है। इस ज्ञान-प्राप्ति के लिए पैसे ख़र्च करने पड़े हैं। भारतमित्र को भी इस ज्ञान के सव्रांश की प्राप्ति अभीष्ट हो तो वह भी इस रिपोर्ट को वैल्यू पेयेबुल पैकेट से मँगा ले। या किसी से माँग जाँच कर काम चलावे। इन प्रान्तों की गवर्नमेंट हिन्दी के लेखकों और मर्मज्ञों को जैसे रीडरें बनाने, अँगरेज़ी में लिखी गई रीडरों का अनुवाद करने और टेक्स्ट बुक कमिटी में बैठने की योग्यता से ख़ारिज समझती है वैसे ही हिन्दी के कितने ही समा- चारपत्रों और पत्रिकाओं को अपनी तथा गवर्नमेंट आव् इंडिया की प्रकाशित पुस्तकें और गैज़ट आदि पाने की याग्यता से भी ख़ारिज समझती है। कुछ ही भाग्यशाली पत्र और पत्रिकायें उसको दृष्टि में इनको पाने की योग्यता रखते हैं। इन कुछ में एक आध मुर्दे भी शामिल हैं। उन को मरे मुद्दतें हुईं। पर सरकारी गैज़ट आदि उन्हें अब तक--दो तीन महीने पहिले तक---बराबर मिलते रहे हैं और शायद् अब भी मिलते हो।

[ दिसंबर १९१३ ]