पर स्फूर्ति होने से आपदा-विपदा का सामना कविता को नहीं बन्द कर सकता। शेख सादी के समय में फ़ारिस में कौन बड़ी शान्ति थी। फिर वे किस तरह गुलिस्ताँ और बोस्ताँ ऐसी अनमोल पुस्तकें लिख सके? अरब में कितने ही कवि ऐसे हो गये हैं जिनको बहुत कम शान्ति-सुख नसीब हुआ। पर, इससे उनके कविता-कलाप में कुछ भी बाधा नहीं आई।
रहे रहीम, गङ्ग, नरहरि, क़ादिर, मुबारक, रसखानि और नरोत्तमदास आदि अकबर के समय के अन्यान्य कवि, सो उनके कोई ऐसे ग्रन्थ प्रसिद्ध नहीं जिनसे हिन्दी की विशेष उन्नति मानी जा सके। इस तरह के कवि शान्ति के समय में भी कितने ही हुए और अशान्ति के समय में भी। उनकी कविता का कारण शान्ति का होना कदापि नहीं कहा जा सकता। शान्ति ही के समय में यदि कविता हो सकती तो पुराने ज़माने में भाट-चारण आदि अपने आश्रयदाता राजों के साथ चढ़ाइयों पर न जाते और वहाँ समयानुकूल कविता बना कर योद्धाओं को उत्साहित न करते।
आश्रय मिलने से कविजन आराम से रह सकते हैं। उन्हें कविता करने में सुभीता ज़रूर होता है। पर आश्रय-प्राप्ति कविता का कारण नहीं। स्मरण रहे, हम अकबर के समय की बात कर रहे हैं, आज कल की नहीं। राजाश्रय यदि कविता-निर्माण का कारण या सहायक होता तो सूर, तुलसी, होमर और सादी कदापि ऐसे उत्तमोत्तम काव्य न लिख सकते। बाबू हरिश्चन्द्र को किसका आश्रय था? माइकेल मधुसूदन को किसकी मदद थी? अकबर के ज़माने में जो हिन्दी की इतनी उन्नति हुई वह विशेष करके तुलसी और सूरदास की रचनाओं से। इन कवियों को किसी का आश्रय न था---न अकबर का, न उसके दरबारियों का।