पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२२३

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हिन्दी-नवरत्न

से परिमित कर दिया है। यह सच है, परन्तु मनुष्य की अल्पज्ञता के ख़याल से उन्हें दुनियां भर की भाषाओं की बात कदापि न कहनी चाहिए थी। रामायण को संसार-साहित्य का मुकुट बताने और रामचन्द्र-भरत की बात-चीत के सदृश संवाद लिखने में किसी भी भाषा के किसी भी कवि को असमर्थ ठहराने में तो आप लोगों ने 'शायद' और 'जानकारी के प्रयोग की भी आवश्यकता नहीं समझी। अतएव, दुःख से कहना पड़ता है कि आपकी इस तरह की उक्तियों का आदर समझदार आदमी कभी नहीं कर सकते। आपके कथन से यह भाव ध्वनित होता है कि आपकी राय में व्यास, वाल्मीकि, कालिदास, होमर, शेक्सपियर आदि किसी के भी ग्रन्थ साहित्य का मुकुट होने की योग्यता नहीं रखते। रखता है केवल रामचरितमानस, जिसके प्रत्येक शब्द में आप लोगों को 'अद्वितीय चमत्कार' देख पड़ा है।

लेखकों की राय में---समस्त 'बालकाण्ड उत्तमोत्तम बन पड़ा है' और अयोध्याकाण्ड की---'रचना अन्य काण्डों से इतनी उत्तमतर है कि इसकी प्रशंसा करने के लिये कोष में शब्द नहीं"। अन्त में, ६४ पृष्ठ पर, आप लोगों ने अयोध्या-काण्ड को पहला और बाल-काण्ड को दूसरा नम्बर दिया है। सो यहाँ पर आपका 'उत्तमतर' शब्द 'उत्तमोत्तम' से भी बढ़ गया! 'उत्तमोत्तम' शब्द सर्वोत्तम का बोधक होकर भी उसे 'उत्तमतर' से हार माननी पड़ी!

विनयपत्रिका के विषय में लेखक महोदयों की राय है---"विनय-सम्बन्धी ऐसा अद्भुत और भाव-पूर्ण ग्रन्थ हमने अब तक किसी भी भाषा में नहीं देखा"। मालूम नहीं, आपने किन किन भाषाओं के कौन कौन विनय-सम्बन्धी ग्रन्थ देखे हैं। संस्कृत में स्तुतिकुसुमाञ्जलि नाम का एक ग्रन्थ है। उसके विषय में भी यदि