पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/८१

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पृथिवी-प्रदक्षिणा


जाती है। हमारा ख़याल है कि ऐसे लोगों के भी मनोरञ्जन की सामग्री इस पुस्तक में बहुत काफ़ी है। अस्वस्थता की अवस्था में भी हमने इसका बहुत सा अंश पढ़ डाला, पर जी न ऊबा और न सिर में दर्द ही पैदा हुआ। मिस्र के मीनारों और लुकसर के भग्नावशेषों, अमेरिका के नियागरा-नामक विश्वविख्यात जलप्रपातों और हवाई द्वीप के अग्नि उगलनेवाले ज्वालामुखी पर्वत के गह्वरों आदि के वर्णन पढ़ने से जितना मनोरञ्जन होता है उतना सहस्र-रजनीचरित्र और कथासरित्सागर से भी नहीं हो सकता। पर्य्यटक महाशय ने पुस्तक में कितने ही अद्भुत दृश्यों अद्भुत पदार्थों और अद्भुत रीतिरस्मों का भी वर्णन, बड़ी ही चटकीली भाषा में, किया है। उसके पाठ से भी मन में कौतूहल की उद्भावना हुए बिना नहीं रहती। इसके सिवा इस “प्रदक्षिणा" में और भी ऐसी सैकड़ों बातें हैं जो यथेष्ट मनोरञ्जक हैं और जिनकी वर्णना पढ़ कर लेखक को हार्दिक धन्यवादरूप-दक्षिणा देने की प्रबल इच्छा मन में उदित होती है।

ज्ञानवृद्धि का तो कहना ही क्या है। पुस्तक का एक पृष्ठ भी शायद ऐसा न होगा जिसमें साधारण जनों की ज्ञानवृद्धि की कुछ न कुछ सामग्री न पाई जाय। जो जिस बात को नहीं जानता, फिर चाहे वह कितनी ही छोटी बात क्यों न हो, उसे जान लेने से भी मनुष्य की ज्ञानवृद्धि होती है। फिर इस पुस्तक में तो ऐसे अनेक दृश्यों, देशों, व्यवसायों, शिक्षालयों और राजनैतिक विषयों के विस्तृत वर्णन हैं जिनसे असाधारण जनों की तो बात ही नहीं, ख़ूब सुशिक्षितों और असाधारण जनों की भी ज्ञानवृद्धि हो सकती है। कालेज की बड़ी बड़ी परीक्षायें "पास" किये हुए "ग्राजुएटों' में भी ऐसे कितने निकलेंगे जो अमेरिका के हार्वर्ड-विश्वविद्यालय की शिक्षा-प्रणाली से परिचित हों और यह जानते