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सम्पत्ति-शास्त्र ।

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क्या आप कह सफेंगे कि गलैंड में इसकी तैयारी में जितना खर्च पड़ा हेगी, हिन्दुस्तान में उसकी क़ीमत उतनी ही होगी ? कदापि नहीं। क्योंकि कपड़े की फ़ोमत अनाज के रूप में दी गई है। अनाज का एक निश्चित परिमाण, अर्थात् सौ मन, हिन्दुस्तान ने दिया है। ने उससे वह कम देने पर राज़ी है, न अधिक देने पर। अतएब यह कहना चाहिए कि एक गरी कपड़े को क़ीमत इंगलैंड में चाहे जितनी है।, हिन्दुस्तान में सिर्फ सौ मन अनाज है। अथबा ये कॅहिए कि हिन्दुस्तान में सा मन अनाज उत्पन्न करने में श्रम और पूंजो आदि मिला कर जो खर्च पड़ा है वही इस एक गठरो कपड़े की क़ीमत है । इंगलैंड में इतना कपड़ा तैयार करने में चाहे जितने दिन लगे है–चाहे जितना परिश्रम और जितनी पूँजी लगी है–उससे कुछ मतलध नहीं; चह हिसाव में न ली जायगी । एक गठरी कपड़ा तैयार करने में यदि पाँच दिन इंगलैंड में लगे हों, और सौ मन अनाज उत्पन्न करने में यदि पच्चीस दिन हिन्दुस्तान में लगे हों, तो पाँच दिन को मेहनत पच्चीस दिन की मेहनत के बराबर हो गईं। । चनुत सम्भव है कि हिन्दुस्तान एक गठरी कपड़े के बदले सो मन अनाज न देकर पचहत्तर ही मन दें, अथवा, कई कारण उपस्थित होने पर, सवा सौ मन तक देने पर राज़ी हो जाय । अर्थात् इंगलैंड में पाँच दिन की। मेहनत से तैयार हुई चीज़, हिन्दुस्तान में कभी पच्चीस दिन की मेहनत से कम हो जायगी, कभी ज़ियादह । इस से सिद्ध हुआ कि कपड़े के बदले हिन्दुस्तान जितनी अनाज़ देने का राज़ी होगा, या मजबूर हैकर उसे जितना अनाज देना पड़ेगा, इंगलैंड के कपड़े की उतनी ही क़ीमत होगी । इंगलैंड और हिन्दुस्तान के दरमियान पहले ही से शर्त है। जायगी कि कपड़े और अनाज के अदला-बदल में इतना कपड़ा इतनै अनाज की बराबर समझा जाय । अर्थात् इतने कपड़े की क़ीमत इतने अनाज के तुल्य मान ली जाय । यही शर्त क़ीमत की निर्णायक होगी । जितनी चीज़ों का इन दोनों देशों के दरमियान अदला-बदल होगी इसी तरह की शर्तों के अनुसार होगा ।

अतएव वैदेशिक व्यापार में भिन्न भिन्न प्रकार की चीज़ों का जी अदलाबदल होता है वह अपने अपने देश के उत्पादन-व्यय के अनुसार नहीं होता । कपड़ा और अनाज दोनेां चीजें यदि इंगलैंड अथवा हिन्दुस्तान में ही पैदा होता तो उनकी अदला-बदल अपने अपने देश के उत्पत्ति-वर्च