पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६९

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३५० सम्पत्ति-शास्त्र । जो लोग इन चीज़ों का व्यापार करते हैं उन्हीं से इकट्ठा कर ले लिया जाता है। इससे कर बसूल करने में गवर्नमेंट का खर्च भी कम पड़ता है और कर देने वालों को तकलीफ़ भी कम होती है । कर के कारण इन चीज़ों का भावे महँगा ज़रूर हो जाता है; तथापि उसका बोझ उतना नहीं मालूम हो। इसके लिया इस तरह कर वसूल करने से प्रज्ञा का मन भी क्षुष्ध्र नहीं होता और होता भी है तो बहुत कम । क्योंकि इन चीज़ों को मौल लेते समय बहुत कम लोगों को इस बात का खयाल होता है कि कर लगाने के कारण ही ये महँगी विक रही हैं। परोक्ष करों का बोझ अमीर आदमियों की अपेक्षा गरीबों ही पर अधिक पड़ता है। क्योंकि ऐसे कर प्रायः व्यवहारोपयोगी चीज़ों ही पर गाये जाते हैं । यह वात एडम स्मिथ के क़र-सम्यन्धी पक्षले नियम के प्रतिकूल है । उसका सिद्धान्त यह है कि जिसकी जितनी अमदर्ना हो उसे उसके अनुसार कर देना चाहिए ! पर अमरों और साधारण क्षिति के आदमियों व व्यवहारोपयोगी योजें बहुधा एक सो खर्च करनी पड़ती हैं। इससे पूर्वोक सिद्धान्त का उल्लंघन होता है। अमीरों के यहां महीने में यदि आठ सेर शकर के लिए तीन रुपये देने पड़ते हैं तो उन्हें ज़रा भी नहीं जलता । परन्तु साधारण स्थिति के आदमियों को जरूर खलता है। उन्हें यदि तीन रुपये के बदले दो ही देने पड़े तो शैप एक रुपया उनके किसी और काम आवे । शार की बात जाने दीजिए। उसका तो हमने यहो, उदारण के तौर पर, उल्लेख किया । नमक को लीजिप । उस पर गवर्नमेंट' कड़ी कर लेती है । पर नमक ऐसी चीज़ है जिसके विना किसी का काम नहीं चल सकता । गली गली भोग्नु माँगने वाले घर-द्वार-हीन भिखारियों को भी नमक चाहिए । यदि एक अदिमी महीने में अधि सेरनमक ख़र्च करे तो साल भर के लिए उसे छः सेर नमक चाहिए। जिस कुटुम्ब में सिर्फ तीन आदमी है उसै साल में अठारह सेर नमक लेना पड़ता है। एक सन नमक तैयार करने में एक प्राने से अधिक खर्च नहीं पड़ता । पर गवर्नमेंट उस पर जो कर लेती है वह उसकी लागत से कई गुना अधिक है। जिसकी आमदनी १००० रुपये से कम है उसे अपनो अमदनी पर कर नहीं देना पड़ता। पर हज़ार, पाँच सौ, चार सौ, तीन सौ, दो सौ, सी, पचास की बात जाने दोजिए, जिसकी आमदनी पक ही आना है वह भी इस कर, से नहीं