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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके लिए खेतीको चुना गया है। वे अपने कपड़े आप धोते हैं और उन्हें प्रत्यक काममें पूर्णतया स्वावलम्बी रहना सिखाया जाता है। स्कूलके साथ ही चप्पल बनाने और सिलाई सीखनेका भी एक वर्ग चलता है। सिलाईका वर्ग श्रीमती वाँगलके निरीक्षण में चलता है, जिन्होंने गत वर्ष भारतीय महिला संघकी ओरसे एक भारतीय बाजारका[१] सफल आयोजन करके दिखलाया था । मुझे यह बतानेकी आवश्यकता नहीं कि श्रीमती वॉगल यह कार्य केवल कर्त्तव्य-भावनासे कर रही हैं। फार्मपर स्कूल या रसोईके कामके लिए वेतन भोगी नौकर नहीं रख जाते । रसोईका सारा काम श्रीमती गांधी और श्रीमती सोढा करती हैं। दो या तीन विद्यार्थी, जो प्रति सप्ताह बदलते जाते हैं, इनकी सहायता करते हैं। फार्मपर तम्बाकू और शराब न पीने और निरामिष भोजन करनेके नियमका पालन सबको करना पड़ता है। मानसिक शिक्षण प्रतिदिन कमसे कम साढ़े तीन घंटे तक दिया जाता है। उसमें विद्यार्थियोंकी अपनी-अपनी भाषा, अंग्रेजी, गणित और जितना अंग्रेजी अथवा मातृभाषा पढ़ाते हुए प्रसंगवश जरूरी हो जाता है उतना भूगोल तथा इतिहास पढ़ाया जाता है। शिक्षाका माध्यम मुख्यतः भारतीय भाषाएँ, अर्थात् गुजराती, हिन्दी और तमिल हैं। मुझे खेद है कि तमिलका कोई अच्छा अध्यापक न मिलनेके कारण उसकी पढ़ाई बहुत प्रारम्भिक अवस्थामें चल रही है। शामको एक घंटा बालकोंको अपने-अपने धर्मसे परिचय करवानेमें लगाया जाता है। इसके लिए इस्लाम, हिन्दू और जरथुस्त्री धर्मोकी पुस्तकोंका पाठ किया जाता है। इस समय जरथुस्त्री धमकी पुस्तकोंका पाठ बन्द है, क्योंकि स्कूलम जो दो पारसी बालक थे वे हाल ही में चले गये हैं। धर्मोके अनुसार, यह पत्र लिखनेके समय तक, सोलह बालक हिन्दू और नौ मुसलमान हैं और प्रान्तोंके अनुसार अठारह गुजराती, छ: तमिल और एक बालक उत्तर भारतीय है । विभिन्न धर्म-पुस्तकोंका पाठ होनेके समय सभी धर्मोके बालक उपस्थित रहते हैं । उनमें यह भाव भरनेका यत्न किया जाता है कि वे सर्व प्रथम भारतीय हैं और अन्य सब-कुछ बादमें; और यह भी कि उन्हें अपने धर्मका पूरी सचाईसे पालन करते हुए भी अपने साथी बालकोंके धर्मका समान रूपसे आदर करना चाहिए। फार्मका जीवन अधिकसे-अधिक सादगीका जीवन है।

यह स्कूल अभी एक प्रयोगके रूपमें चलाया जा रहा है। इसलिए ऐसी आशा करना तो बहुत बड़ी बात होगी कि यहाँके बालक बड़े होकर भी किसान ही बने रहेंगे और सादा जीवन बितायेंगे, तो भी इतनी आशा तो रखी ही जा सकती है। कि वे इस समय जो कुछ सीख रहे हैं, जीवन-संघर्ष में पड़कर भी उसके अनुसार कुछ-न कुछ अवश्य चलेंगे।

अलबत्ता, इस स्कूलको चलाते रह सकनेका सवाल है । मेरी इच्छा है कि जबतक मैं दक्षिण आफ्रिकामें रहूँ तबतक इसी काममें लगा रहूँ और वकालतका जो काम मैं कुछ समयसे बिलकुल छोड़ चुका हूँ उसे फिर न करूँ। जिस कामको

 
  1. देखिए "अभिनन्दनपत्र : श्रीमती वॉगलको", पृष्ठ १७९ २. देखिए "पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको”, पृष्ठ ६६ ।