पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३०७

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भाषण: हाजियोंकी विदाई सभामें २७१ अन्त में उपसंहार करते हुए उन्होंने कहा : २ हजके लिए जाने वाले श्री दाउद मुहम्मद, मुहम्मद कुवाडिया, श्री दाउद सीदत तथा श्री मुल्लाको मैं हृदयसे बधाई देता हूँ। वे हज-यात्रापर जा रहे हैं, यह सुनकर एक हिन्दूके रूपमें मुझे खुशी हुई है। जो सच्चा मुसलमान है, उससे हिन्दूका अहित हो ही नहीं सकता। [ इसी प्रकार ] सच्चे हिन्दूसे मुसलमानका अहित नहीं हो सकता । जो अपने हिन्दू भाइयोंका अहित कर सकता है, वह मुसलमान सच्चा मुसलमान नहीं है और न अपने मुसलमान भाइयोंका अहित करनेवाला हिन्दू, सच्चा हिन्दू । समाजके निमित्त निःस्वार्थ भावसे किये गये कार्यको मैं सांसारिक कार्य नहीं बल्कि धार्मिक कार्य मानता हूँ । इसलिए मैं यह मानता हूँ कि श्री दाउद मुहम्मदने जेल जाकर समाजकी जो सेवा की है वह निश्चय ही भगवानके दरबारमें भी मंजूर होगी। दूसरी ओर, अशुद्ध मनसे किये गये धार्मिक कार्यको मैं धार्मिक नहीं मानता । यह बात बार-बार कही जाती है कि भारतीय समाजमें एकता नहीं है। लेकिन यह सच ही है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। साथ ही हमें आँखें बन्द करके यह भी नहीं कहना चाहिए कि हममें फूट है ही नहीं। हमारे यहाँ [ दक्षिण आफ्रिका ] के कष्टोंका कारण साहसकी कमी है। पर हममें साहस बिलकुल ही नहीं है, यह भी मैं नहीं कहना चाहता। जिस समय जेल जानेके लिए इमाम साहब आगे आये उस समय कौन कह सकता था कि वे जेलके कष्टोंको झेल सकेंगे ? ये अपनी हिम्मतके बलपर आगे आये, और अपनी हिम्मतके बलपर ही वे संघर्ष में अन्ततक टिके हुए हैं। हमारी मुख्य आव- श्यकता सत्यवादिता है । सत्य, सत्य और केवल सत्य, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए । हम सत्यके बलपर दुःखोंके समुद्र भी लाँघ सकेंगे। सच्ची मनोवृत्तिसे किया गया काम कभी निष्फल नहीं जाता । समाजका काम केवल सच्ची मनोवृत्तिसे कीजिए । एकता बनाये रखना कोई मुश्किल काम नहीं है । यदि मुसलमान झगड़ा करना न चाहें तो सिर्फ हिन्दू झगड़ा नहीं कर सकते। यदि हिन्दू झगड़ा न करना चाहें तो अकेले मुसलमान भी झगड़ा नहीं कर सकते। एक सौ व्यक्ति झगड़ा करानेवाले हों और अगर एक एकता करानेवाला हो, तो उन सौ व्यक्तियोंकी हार होगी और एक व्यक्तिकी जीत होगी। ऐसा न हो तो खुदाकी खुदाई टिक नहीं सकती। [ गुजरातीसे ] इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९१२ १. मुहम्मद कासिम कुवाडिया; व्यापारी; डर्बन अंजुमनके अध्यक्ष और वेस्ट स्ट्रोट मस्जिदके एक न्यासी । २. अगस्त १९०८ में, नेटालकी ओरसे संघर्ष में सहयोग देने और उस उपनिवेशमें अपने युद्ध-पूर्वके अधिवास-अधिकारको परीक्षा लेनेके लिए उन्होंने ट्रान्सवालमें प्रवेश किया था; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४७९ । ३. हिन्दू-मुस्लिम एकतापर गांधीजी के पहलेके विचारों के लिए देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ५३, और १२६-२७, १७५; खण्ड ६, पृष्ठ २७७ और २८१-८२; खण्ड ८, पृष्ठ २७, ९६-९७, ११२, १३३, ३८८ और ४१४ तथा खण्ड ९, पृष्ठ १५३, १७६ और २६४-६५ ।