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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३१२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके अमल में हस्तक्षेप न करते हुए वह आम लोगोंके साथ समान रूपसे नम्रता और शिष्टताका व्यवहार करे। हम नहीं समझते कि इस परिपत्रकी, शासनके हितकी दृष्टिसे, कोई आवश्यकता है। इससे तो व्यवहार कुशलताका शोचनीय अभाव ही प्रकट होता है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९१२


२३४. भारतीय दुभाषिये

हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालयकी नेटाल शाखा में तीन भारतीय भाषाओं (हिन्दुस्तानी, तमिल और तेलुगु) के लिए केवल एक दुभाषिया रखा गया है। जैसा कि हमें बतलाया गया है, सम्भव है कि यह सज्जन इन तीनों भाषाओंको समझा सकते हों, परन्तु हमारा यह कहना है कि जब एक ही आदमीसे एक साँसमें इन तीनों भाषाओंकी विभिन्न बोलियोंमें मतलब समझानेको कहा जायेगा तब वह सबको सन्तुष्ट नहीं कर सकेगा। सर्वोच्च न्यायालयको जीवन और मृत्युके प्रश्नोंका निर्णय करना पड़ता है और अभियुक्तका भाग्य गवाहीके ठीक- ठीक समझे जानेपर निर्भर होता है । जब कैदीसे प्रश्न पूछने के लिए कहा जाता है। तब वह गवाहोंकी भाषा न समझ सकने के कारण उनसे प्रश्न नहीं कर सकता । उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि हिन्दुस्तानी और तमिल बोलनेवाले दो भारतीय एक ही मुकदमे में अभियुक्त हैं । एक तेलुगु भाषी गवाह कठघरे में जाकर उन दोनों के विरुद्ध गवाही देता है। अभियुक्तोंका वकील कोई नहीं है, इसलिए उन्हें गवाहसे स्वयं ही जिरह करनेका अवसर दिया जाता है। तमिल अभियुक्त तेलुगु गवाहसे दुभाषियेकी मार्फत कुछ पूछता है । दुभाषिया [ गवाहका ] उत्तर [ अभियुक्तको ] तमिल भाषा में और अदालतको अंग्रेजी भाषामें बता देता है। क्या कुछ हो रहा है इसका पता हिन्दुस्तानी-भाषी अभियुक्तको भी लगना लाजिमी है; परन्तु हमारा खयाल है कि आजकी परिस्थितियोंमें, गवाही उसे समझाई नहीं जाती । दुभाषियेसे यह अपेक्षा रखी जाती है कि वह सारी कार्रवाई याद रखे और उसका सारांश अभियुक्तोंको बतला दे । अदालती कार्रवाई केवल एक भाषामें हो तो भी कुछ-न-कुछ कसर अवश्य रह जाती है, किन्तु यदि अभियुक्त दो और भारतीय भाषाएँ तीन-तीन हों तब तो अभियुक्तोंको दुभाषिये द्वारा कार्रवाईकी पूरी-पूरी जानकारी मिलनेकी सम्भावना वहुत कम रह जाती है। सहज ही समझा जा सकता है कि अभियुक्तको सेंतमेत मृत्यु दण्ड दे दिया जा सकता है।

हम गुजराती दुभाषियोंके न होने की बात इसके पहले भी उठा चुके हैं। इस भाषाको बोलनेवाले लोग तो बहुत हैं, परन्तु अदालतोंमें उन्हें सदा हिन्दुस्तानी बोलनी पड़ती है। हिन्दुस्तानी उन्होंने कभी नहीं सीखी; यहीं दक्षिण आफ्रिका में आनेके बाद वे उसे थोड़ा-बहुत समझने-बोलने लगे हैं ।