और इसमें कोई सन्देह नहीं कि केप और नेटाल दोनों ही प्रान्तों के प्रवासी अधिकारियों ने अपनी मनमानी से कई निर्दोष व्यक्तियों को बड़ा कष्ट पहुँचाया है। केप के भारतीयों का सुझाव है कि प्रान्त के प्रवासी कानूनों में रद्दोबदल करते समय प्रवासी अधिकारी के ऊपर एक प्रवासी बोर्ड बनाने की व्यवस्था की जानी चाहिए और उसमें भारतीयों को प्रभावपूर्ण प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ।
५. परवाना कानूनों से भारतीय व्यापारी और फेरीवाले बड़ी मुसीबत में पड़ गये है । तटवर्ती प्रान्तों के परवाना-अधिकारियों ने कई विचित्र से कारणों का बहाना लेकर, और कभी-कभी तो बिना किसी कारण के ही, भारतीय व्यापारियों को “ उखाड़ने " की नीति अपना ली है । केप में सैकड़ों भारतीय फेरीवाले बरबाद हो चुके हैं, और जिनमें वे काम करते थे, ऐसी सैकड़ों फर्मों बन्द हो चुकी हैं। नेटाल में १९०९ के संशोधन कानून से भारतीय समाज पर होनेवाले पहले के घोर अन्याय को रोकने में निःसन्देह ही काफी सहायता मिली, लेकिन अब परवाना अधिकारी परवानादारों को उनकी जीविका से वंचित करने के अन्य तरीके निकाल रहे हैं । जिन भारतीय व्यापारियों ने ऋणदाताओं से कोई करार कर रखा है, वे तो व्यापार चालू रहने पर ही उन करारों की पूर्ति कर सकते थे, लेकिन उन्हें परवाना देने से इनकार कर दिया गया है । यदि भारतीय व्यापारी अपना कारोबार किसी दूसरी दूकान में ले जाना चाहता है, तो उसके परवाने पर स्थानान्तरण के लिए आवश्यक पृष्ठांकन करने से इनकार कर दिया जाता है और यदि वह अपने कारोबार में किसी को साझेदार बनाना चाहता है तो परवाना अधिकारी उसे, इसकी भी इजाजत नहीं देते । यदि वह अपना कारोबार अपने पुत्र को सौंपना चाहता है तो उसकी इजाजत नहीं दी जाती और कोशिश यह होती है कि परवाना जिसके नाम- पर है, उसके जीवन काल तक ही परवाने की अवधि सीमित कर दी जाये, जिससे कि पुत्र अपने पिता के कारोबार का उत्तराधिकारी न हो सके । परवाना दूसरों के नाम पर भी करवाना, यहाँतक कि उपनिवेश में जन्मे किसी भारतीय के नाम पर करवाना भी लगभग असम्भव है । यदि इसी प्रकार उनकी उन्नति के रास्ते एक के बाद एक बन्द होते रहे, जैसा कि दिख रहा है, तो वास्तव में यह कहना कठिन है कि उपनिवेश में जन्मे भारतीयों का भविष्य क्या होगा । केप और नेटाल के भारतीयों का मत है कि अब निवासी भारतीय समाज की संख्या में आगे कोई वृद्धि होने को सम्भावना नहीं है; इसे देखते हुए भारतीय व्यापार पर लगे ये प्रतिबन्ध शीघ्र ही हटाये जाने चाहिए । परन्तु इसके विपरीत श्री जी० एच० ह्यूलेट ने, जैसा कि उन्होंने खुद ही स्वीकार किया है, भारतीय व्यापारी समाज को इस मान्यता के कारण कि भारत सरकार द्वारा गिरमिटिया मजदूरों का भेजा जाना बन्द किये जाने में उनका हाथ रहा है, दण्डित करने के उद्देश्य से हाल ही में नेटाल प्रान्तीय परिषद् में एक प्रस्ताव पास कराया है, जिसमें यह माँग की गई है कि सम्बन्धित कामकाज, जिसके बारे में अभी केवल संघ-संसद कानून बनाती है, उसके बजाय परिषद् को सौंप दिया जाये । नेटाल के भारतीयों ने ऐसी हर कार्रवाई का जोरदार विरोध किया है । उनका यह विरोध दक्षिण आफ्रिका अधिनियम के खण्ड १४७ की लागू व्यवस्थाओं पर आधारित है । मैं मन्त्री श्री हरकोर्ट की और अधिक जानकारी के लिए इस सम्बन्ध में नेटाल भारतीय कांग्रेस में हुई बहस और प्रस्ताव की एक प्रति इसके साथ नत्थी कर रहा हूँ ।
६. भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीय पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों पर तीन पौंडी वार्षिक कर लगने के कारण दक्षिण आफ्रिका के समूचे भारतीय समाज में बड़ी कटुता फैल गई है, विशेषकर त्रियों और बच्चों- पर कर लगने से उनमें क्षोभ है। इससे भारतीय समाजकी भावनाओं को बड़ी ठेस लगी है। उनका कहना है कि कम से कम स्त्रियों और बच्चों को तो इस करसे विमुक्त रखकर उन्हें ऐसे करों से उत्पन्न होनेवाली बुराइयों से बचाना चाहिए । १९१० के संशोधन अधिनियम से परिस्थिति में बहुत ही थोड़ा सुधार हुआ है । कुछ मजिस्ट्रेट तो कभी-कभी कुछ व्यक्तियों को पूरी छूट दे देते हैं, कुछ मजिस्ट्रेट एक निश्चित अवधि के लिए कुछ व्यक्तियों को अस्थायी तौरपर विमुक्त कर देते हैं, परन्तु कुछ मजिस्ट्रेट ऐसे भी हैं जो बिलकुल छूट नहीं देते; किन्तु मेहरबानी के तौर पर कर की अदायगी के लिए बहुत थोड़ा-सा समय दे देते हैं