५२८ 1 सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय इस वर्ष में कुल मिलाकर १९५५ मौतें हुईं । गत वर्षको संख्यासे यह संख्या २६८ अधिक है । इन मौतोंके मुख्य कारण थे : २४९ को पेचिश हुई थी, १८९ को फेफड़ोंका क्षय-रोग, १३३ को खाँसी इत्यादि और २८३ को निमोनिया । इस वर्ष २४ आत्महत्याएँ हुई; यह गत वर्षकी संख्यासे १० कम है । २४ आत्महत्याएँ बहुत बड़ी संख्या है - इनका कारण क्या था सो एक रहस्य है; संरक्षक इसके बारेमें बिलकुल चुप हैं । पेचिश, क्षय-रोग और निमोनियाके कारण इतनी बड़ी संख्यामें मौतें हो जानेपर अधिकारियोंका ध्यान जाना चाहिए। 'फ्री इंडियन्स' में २२.१५ प्रतिशत के हिसाबसे होनेवाली मौतोंका कारण वह बतलाया जाता है कि गिरमिटिया माता-पिताओंके सभी बच्चोंको 'फ्री' श्रेणीमें रख दिया गया था । इस वर्ष भारतीय बच्चों की मौतोंका अनुपात २२.३३ प्रतिशत पहुँच गया है, जब कि गत वर्षकी रिपोर्ट में यह अनुपात बहुत ही कम अर्थात् ६.५६ प्रतिशत ही बताया गया था। संरक्षकके विचार से बच्चों की मृत्यु- संख्या में इस वृद्धिका कारण, सम्भवतः, कुछ हद तक यह है कि सालके पिछले छः महीने मौसम खराब रहा था । हम नहीं समझते कि मौसम इतना ज्यादा खराब था कि मृत्यु-संख्याका औसत इतना बढ़ जाये । सुना था कि बच्चों की बढ़ी हुई मृत्यु- संख्यापर “ विचार किया जा रहा है", और हम यह समझ रहे थे कि संरक्षक महोदय इसकी कोई माकूल वजह बतलायेंगे । स्वतंत्रता छोड़नेको तैयार संरक्षकका कथन है कि स्पष्ट ही मजदूरीकी दरें बढ़ रही हैं । निःसन्देह यह बात केवल उन भारतीयों की मजदूरीके बारेमें कही गई है, जिन्होंने फिरसे गिरमिटिया बनना स्वीकार किया है। इस बात का कोई आभास नहीं दिया गया था कि पहले-पहले गिरमिट स्वीकार करनेवालोंकी मजदूरी बढ़ाई जानेवाली है या नहीं । अतएव, १५,११४ और आदमियोंके लिए प्रार्थनापत्र आये थे । संरक्षकको आशा है कि दुबारा गिरमिट लेनेवालोंकी औसत संख्या में वृद्धि होनेके फलस्वरूप १९११ के अन्त में सम्भवतः गिरमिटियों की संख्या उतनी ही हो जायेगी जितनी गत दो वर्षों में रही है। ऐसा हो जाना सम्भव है । क्योंकि वेतन वृद्धिको बात छोड़ दें तो भी तीन-पौंडी करके भयसे वे अपनी हो जायेंगे । हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि संरक्षकको धारणा है कि अब मालिक लोग सामान्यतया अपने भारतीय नौकरोंके साथ व्यवहार करनेमें गत वर्षोंकी अपेक्षा अधिक सावधान रहने लगे हैं और जब वे यह पाते हैं कि भारतीयोंके साथ ओवरसियरों या सरदारोंने अनुचित व्यवहार किया हैं, तो अब वे उनके अपराध ढँकनेको कम, उन्हें नौकरीसे निकाल बाहर करनेको ज्यादा तैयार रहा करते हैं । यह बात कुछ हद तक सन्तोषजनक है, और निःसन्देह हमारा यह कर्त्तव्य है कि इसके लिए उन लोगोंको धन्यवाद दें जिनका गिरमिटिया-प्रथाके दोषोंको जनताके सामने लाने में बहुत बड़ा हाथ रहा है । नियत समयसे अधिक काम करनेके प्रश्नपर अभी तक संरक्षकके सन्तोषके योग्य कोई नहीं हुआ है । संरक्षक महोदयके खयालसे एक हद तक इसका कारण दिन-भरका काम तय कठिनाई है । उन्हें इतना और कहना था कि कामका ऐसा नाप तय करके काम लेनेकी प्रथा बिलकुल अनीतिपूर्ण है । हमने तो यही देखा है कि गन्नेकी जितनी फसल कटकर एक मजबूत मर्द या स्त्री मजदूर तीसरे पहरसे पहले ही निर्धारित काम समाप्त कर देता है इतनी कटाई समाप्त करनेके लिए अपेक्षाकृत कम मजबूत व्यक्तियोंको सूरज डूबनेके बाद तक काम करते रहना पड़ता है । और गाड़ियोंमें माल भरनेके कामके सम्बन्धमें यह कहा जा सकता है कि काम खत्म करनेका प्रश्न मुख्यतः गाड़ियाँ कितनी हैं और उन्हें कितनी दूर ले जाना है, इन दो बातोंपर निर्भर करता है । यदि अन्य शर्तें संतोषजनक हों तो भी निश्चित परिमाण में काम करनेकी प्रणाली बहुतेरे गिरमिटिया भारतीयोंका जीवन भाररूप बना देगी । यह बात आसानीसे समझी जा सकती है कि जो मजदूर अपने निर्धारित किये गये कामको अमुक अवधि में पूरा करनेमें असमर्थ फैसला करनेकी समाचारपत्रों में प्रकाशित खबरकी " प्रति काममें न लायें । " देखिए खण्ड १०, १४ ३५१ और इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१०, १५-१०-१९१० और १९-११-१९१० । Gandhi Heritage Porta
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५६६
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