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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५७९

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परिशिष्ट


इस विधेयक मसविदेमें सुरक्षित कर दिये गये हैं। मैंने मन्त्रीसे पूछा कि क्या उन्हें ऐसा नहीं लगता कि अनुच्छेद ७ और ८ को स्पष्टरूपसे कायम रखनेका श्री गांधी और उनके अनुगामियों द्वारा तीव्र विरोध किया जायेगा । उन्होंने कहा कि जबतक फ्री स्टेटमें प्रवेशका अधिकार सुरक्षित है, जैसा विधेयकके मसविदेमें दिया गया है, तबतक श्री गांधी कोई आपत्ति न करेंगे। मुझे ऐसे आशापूर्ण उत्तरकी अपेक्षा नहीं थी; लेकिन जनरल स्मट्सने जिस विश्वासके साथ यह बात कही उसमें इस निष्कर्ष- पर पहुँचा हूँ कि उनका श्री गांधीसे पत्र-व्यवहार हुआ होगा और उन्होंने इस मुद्देपर अपनी दिलजमाई कर ली होगी । उन्हें इस बातका विश्वास हो गया प्रतीत होता था कि जहाँतक विधेयकका सम्बन्ध है, वह इस देशमें रहनेवाले भारतीय समाजको स्वीकार्य होगा। आरेंज फ्री स्टेटके सदस्योंके रुखके सम्बन्धमें जनरल स्मट्सने स्वीकार किया कि २८ वीं धाराकी उपधारा १ उतनी आगे नहीं जाती जितनी वे चाहते हैं । उनकी इच्छा तो यही होगी कि अपने प्रान्त में किसी भारतीयको प्रवेश न करने दें, और यह तो समय ही बतायेगा कि वे इसपर अड़े रह सकेंगे या नहीं । उन्होंने यह आशा प्रकट की कि वे कम से कम इतना तो मानेंगे ही — कि यदि वे विधेयकको केवल इसलिए विफल करनेकी चेष्टा करेंगे कि उससे उनकी सारी आकांक्षाएँ कुछ पूरी नहीं होतीं तो उसे सहन नहीं किया जा सकता । उनका यह खयाल भी है कि उनके पास एक प्रबल तर्क है और वह यह है कि वर्तमान कानूनके अंतर्गत उस प्रान्त में भारतीयों के प्रवेशपर कोई पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्तिके मामलेमें प्रवेशको अनुमति देना या इनकार करना मन्त्रीकी मर्जीपर छोड़ दिया गया है और यदि मन्त्री भारतीयोंपर सम्पत्ति खरीदने या व्यापार या खेती करनेके सम्बन्धमें लगे कानूनी प्रतिबन्धको ध्यान में रखते हुए फ्री स्टेटमें असीमित संख्यामें एशियाइयोंको दाखिल करना ठीक समझे तो उन्हें उससे कोई विमुख नहीं कर सकता । स्मट्सका खयाल यह मालूम होता था कि यदि उन्हें यह स्थिति भली-भांति समझा दी जाये तो उनके रुखमें कोई परिवर्तन होना असम्भव नहीं है । मैं यह भी कह दूँ कि मुझे यह भली- भांति मालूम है कि उपधारा २ का मसविदा जनरल हरकोर्टको खास तौरसे दिखाया गया था और उन्होंने उसकी शब्दावलीपर कोई आपत्ति नहीं की ।

२. मैंने जिक्र किया कि मुझे विधेयकके मसविदेमें ऐसी कोई व्यवस्था दिखाई नहीं दी जिससे मन्त्री द्वारा श्री गांधीको पत्र-व्यवहार में दिया गया यह वचन पूरा हो सके कि उन सत्याग्रहियोंके पंजीयन की व्यवस्थाकी जायेगी जो यदि सत्याग्रह न करते तो पहले ही पंजीयनके अधिकारी होते । स्मरण रहे कि इस मुद्देका उल्लेख लोर्ड ग्लैडस्टनके २३ अक्तूबर के गोपनीय खरीतेके मुद्दे (२) के अनुच्छेद १५ में किया गया है । जनरल स्मट्सने उत्तर दिया कि यह पता चला है कि इस वचनकी पूर्ति के लिए कोई खास कानून बनानेकी आवश्यकता नहीं है और वस्तुतः अब पंजीयनके प्रमाणपत्र दिये जा रहे हैं ।

३. इमला-परीक्षाके सम्बन्धमें जनरल स्मटसने स्वयं ही यह वक्तव्य दिया कि वे परीक्षाकी आस्ट्रेलियाई प्रणालीको उसी रूपमें अपनाने और परीक्षाका विषय केवल यूरोपीय भाषाओं तक सीमित रखनेकी उपयुक्तता- पर विचार कर रहे हैं । उनका खयाल है कि यूरोपीय भाषाओंकी एक सूची बनाने में कोई कठिनाई न होगी और चूँकि इस समय गोरे प्रवासियों में यहूदी प्रजातिके लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं, इसलिए वे थोडिश भाषाको सम्मिलित करनेके लिए भी तैयार हैं ।

४. उन्होंने कहा कि वे अगले अधिवेशनमें विधेयक के पास होनेके बारेमें बहुत आशान्वित हैं और उस सम्बन्धमें पूरा प्रयत्न करेंगे क्योंकि प्रवासके प्रश्नको नियमित रूप देना और तय करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उन्होंने यह बात जितनी जोर देकर कही वह अधिक सन्तोषप्रद है क्योंकि कुछ महीने पहले तो लक्षण ऐसे थे जिनसे लगता था कि इस मामलेमें दिल्चस्पी कुछ कम होनेकी संभावना है ...

... उत्पादक उद्योगमें लगे हैं । यह बात ध्यान देने योग्य है कि गोरोंके प्रवासके सामान्य प्रश्नपर

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