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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६०२

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५६४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय हस्तान्तरगकी वैधता निर्विवाद रूपसे निश्चित हो जाती है और उसके बादसे इस प्रकारके कई हस्तान्तरण किये गये । ९. गत १९ फरवरीको लार्ड सभामें बहसके दौरान १९०८ और १९०९ के करना कानून संशोधन अधिनियमोंके कार्यान्वयनके विषयमें लॉर्ड ऍम्टहिल द्वारा पूछे गये प्रश्नोंके उत्तर में दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटेनके भूतपूर्व उच्चायुक्त और ट्रान्सवालके गवर्नर लॉर्ड सेल्बोर्नैने इस बातकी ताईद की कि ये हस्तान्तरण खुले ढंगसे और बिना किसी छिपावके होते रहे थे । अधिकृत रिपोर्ट ( ऑफीशियल रिपोर्ट) में उनका यह कथन उद्धृत है : एक ब्रिटिश भारतीय प्रजाजन भूमिका स्वामी नहीं हो सकता और प्रत्यक्ष रूपसे खान उद्योग भी नहीं चला सकता । लॉर्ड महोदय, मैं यहाँ वही बात कहता हूँ, जो मैंने ट्रान्सवाल्की एक सभामें कही थी । मैं नहीं समझता कि ये दोनों प्रतिबन्ध न्यायोचित हैं । मेरी रायमें ये [ प्रतिबन्ध ] न केवल न्यायोचित ही नहीं हैं, बल्कि अत्यन्त मूर्खतापूर्ण है; क्योंकि वे सर्वथा अव्यावहारिक हैं। किसी भी ब्रिटिश भारतीयको भूमिका पूर्ण स्वामित्व प्राप्त करनेका निषेध है, किन्तु किसी गोरेके साथ आपली व्यवस्था करके उसके जरिये वह भूमिको बिल्कुल पक्के ढंगसे अपने कब्जे में रखता है 1 १०. तब, जहाँ यह साफ है कि कानून में भारतीयोंको अचल सम्पत्तिके स्वामित्वका निषेध है, वहाँ पह उतना ही साफ है कि उपनिवेशकी अदालतों और सरकार द्वारा मान्य अप्रत्यक्ष स्वामित्वका रिवाज बन जानेक कारण कुछ अतिरिक्त आनुषंगिक खर्चोंको छोड़कर ट्रान्सवालके भारतीय समाजके अपेक्षाकृत धनी वर्गको कोई वास्तविक कठिनाई नहीं हुई है । ११. यदि साम्राज्य सरकार और ट्रान्सवालके भारतीय १८८५ के कानून ३ की निषेधक धाराको रद करनेपर जोर देते हैं तो वे ऐसा न केवल समाजके कम सम्पन्न सदस्योंकी रक्षाके लिए करते हैं, बल्कि उस जातिभेदपर आधारित निर्योग्यताको दूर करानेके लिए भी करते हैं जो न तो ट्रान्सवाल्के वतनियोंपर लागू है और न अन्य किसी [गैर भारतीय] रंगदार ब्रिटिश प्रजापर ही । १२. यह बात समझ ली जानी चाहिए कि जहाँ भारतीयोंने व्यक्तिशः भूमिके अप्रत्यक्ष स्वामित्वके अधिकारका लाभ उठाया है यह अधिकार सम्भावनाकी दृष्टिले समाजके प्रत्येक सदस्यको प्राप्त है । १३. सन् १९०८ में १९०७ के कस्वा अधिनियमका संशोधन करते हुए कस्बा संशोधन अधिनियम (१९०८ का, संख्या ३४, ट्रान्सवाल) पास किया गया । यह कानून विशेष रूपसे कस्बोंमें स्थित बाक बारेमें बनाया गया था । यह कानून तथा इसके बाद १९०९ का एक संशोधन अधिनियम, दोनों सामान्य नियम निर्धारित करते थे, अर्थात् उनमें कोई जातीय भेदभाव नहीं किया गया था, और उनमें अमुक परिस्थितियोंमें और अमुक शर्तोंपर पट्टेको पूर्ण स्वामित्वके अधिकार में बदले जानेकी व्यवस्था की गई थी । १४. ययपि साधारण परिस्थितियोंमें किसी पट्टेदारको पूर्ण स्वामित्वका पट्टा प्राप्त करनेके लिए भर्जी देना आवश्यक नहीं है, लेकिन कुछ परिस्थितियोंमें इस प्रकारकी अर्जी देना अनिवार्य कर दिया गया । १५. इन अधिनियमों में भूमिका पूर्ण स्वामित्व देनेकी शंत निर्धारित करनेवाले विनियमों (देखिये, श्वेतपत्रका परिशिष्ट सी० डी० ६०८७) के प्रकाशनकी व्यवस्था की गई थी । १६. ये शर्ते १९०९ के सरकारी नोटिस ( ट्रान्सवाल), संख्या ६४०, के अन्तर्गत प्रकाशित की गई थी। उसकी उपधारा (घ) निम्नलिखित है : " यह (स्वामित्वके पट्टे द्वारा प्रदत्त भूमि ) या इसका कोई भाग किसी भी रंगदार व्यक्तिको हस्तान्तरित नहीं किया जा जायेगा, और न उसे पट्टेपर अथवा किसी भी अन्य रूपमें ही दिया जायेगा; १. यहाँ नहीं दिया गया । Gandhi Heritage Portal