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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


मैं जोजेफ[१] और क्विनको[२] पत्र[३] लिख रहा हूँ; वे १८ अप्रैलको रिहा किये जायेंगे ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४६६) की फोटो-नकलसे ।

३३. पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको

[केप टाउन]
अप्रैल १७, १९११

प्रिय रिच,

तुम्हारा पत्र मिला। मैंने तुम्हें कल पत्र नहीं लिखा। लिखनेको कुछ था नहीं। मैने 'इं० ओ०' के गुजराती स्तम्भोंमें एक सम्पादकीय टिप्पणी[४] लिखी है। इसमें यह बताया है कि यदि जनता चाहे तो किस तरह तुम्हारे कार्यकी सराहना कर सकती है। इसे गत शनिवारको छप जाना था।

यदि लेनका कहना ठीक हो तो हमें इस सप्ताह निश्चित परिणामका पता चल जायेगा। स्मट्स तो इस मामलेको राज्यारोहणके समय तक खींचना चाहेंगे, किन्तु मेरा अनुमान है कि यह तबतक खींचा नहीं जा सकता। किन्तु अनुमान करना व्यर्थ है। यदि बुधवारको भी निराशा हाथ लगी तो हमें फिर थोड़े ही दिनों में और भी बुरी खबर सुननी पड़ेगी।

मैं तो आशा करता हूँ कि ग्रेगरोवस्की[५] ब्लूमफॉन्टीन जा सकेंगे।[६] यदि वे न जा सकें तो यह बहुत दुःखकी बात होगी। उस अवस्थामें लैपिनको अपनी पसन्दका

  1. जोजेफ रायप्पन; आपका जन्म भारतीय गिरमिटिया माता-पितासे नेटालमें हुआ था; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयसे ग्रेजुएट हुए, वहींसे बैरिस्टरी पास की; एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशके विरुद्ध लॉर्ड एलगिनको दिये गये प्रार्थनापत्रपर जिन पाँच विद्यार्थियोंने हस्ताक्षर किये थे उनमें एक श्री रायप्पन भी थे । जब ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्टमण्डल इंग्लैंडमें था, उन्होंने वरावर उसकी मदद की। वादमें सन् १९१०में दक्षिण आफ्रिका लौटनेपर उन्होंने कई बार कैद और निर्वासन भोगा; देखिए. खण्ड १० तथा दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय ३० ।
  2. लिअंग क्विन; जोहानिसबर्गवासी चीनियोंके नेता और चीनी संघ तथा कैंटोनीज़ क्लबके अध्यक्ष, सन् १९०८में स्मट्सको लिखे “समझौता पत्र" पर हस्ताक्षर करनेवालों में वे भी एक थे। एशियाई पंजीयन अधिनियमके विरोधमें अपने पंजीयन प्रमाणपत्र जलाकर जेल जानेवालोंमें भी वे शामिल थे; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५० और ९, पृष्ठ २३४ ।
  3. ये पत्र उपलब्ध नहीं हैं।
  4. देखिए “जोहानिसबर्गमें रिच", पृष्ठ २५ ।
  5. ग्रेगरोवस्की; जोहानिसबर्गके एक वकील, जिनसे कानूनी और संवैधानिक मामलोंमें गांधीजी अक्सर राय लिया करते थे; बादमें उन्होंने न्यायालयों में सत्याग्रहियोंकी पैरवी की; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ४४४-४६ और ४५७-५८ ।
  6. रम्भावाई सोढाके मामलेकी अपीलके सिलसिलेमें । ग्रेगरोवस्की वहाँ गये तो सही, लेकिन २२ अप्रैलको अपीलकी सुनवाई हुई और मय खर्चके मुकदमा खारिज कर दिया गया ।