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पत्र : सर वेंजामिन रॉबर्टसनको

ट्रान्सवालके स्वर्ण-कानून : यदि संघ सरकार “निहित अधिकारों" को जो अर्थ मैन दिया है उसे स्वीकार कर ले तो वह इसमें निश्चित रूपसे राहत दे सकती है; वह अपने खरीतोंमें उसे मान्यता देने का वायदा भी कर चुकी है । " निहित अधिकारों" का अर्थ मैं भारतीय और उसके वारिसका उस नगरमें, जिसमें वह स्वयं भी रहता है और व्यापार करता है, रहने और व्यापार करनेका अधिकार समझता हूँ; भले ही वह उस क्षेत्रके भीतर अपने निवास या व्यापारका स्थान कितनी ही बार क्यों न बदले ।

ट्रान्सवालका १८८५ का कानून : सरकार बिना किसी आशंकाके आसानीसे कानूनमें निर्धारित बस्तियों या बाड़ोंमें स्वामित्वके अधिकारका लाभ देकर कानूनके अमलको नरम, बल्कि न्यायोचित बना सकती है। इस सम्बन्धमें मेरे विचारसे सरकारका पुरानी बस्तियोंको समाप्त कर देना बहुत ही खतरनाक बात होगी।

शिक्षा: सरकार द्वारा इस मामलेको दुःखद उपेक्षा की गई है। नेटालके स्कूल निकम्मे है और केप और ट्रान्सवालमें जो थोड़े-बहुत स्कूल हैं वे भी किसी कामके नहीं है। देशी भाषाओंकी उपेक्षा की जा रही है और भारतीय अभारतीय बन रहे है; वे ठीक तरहसे यरोपीय भी नहीं बन पाते।

भावी प्रवेश : समाजकी जरूरतोंके लिए आवश्यक नये लोगोंकी प्रवेश-संख्या अभी तक सिवाय ट्रान्सवालके और कहीं निर्धारित नहीं की गई है। मैंने संघके लिए कमसे-कम ४० का सुझाव दिया है। यह पिछले पाँच वर्षोंके औसतसे कहीं कम है।

इन मुद्दों में से प्रत्येक सत्याग्रह घोषणाके' ५वें खण्डके अन्तर्गत आ जाता है। उन्हें आयोग नहीं निपटा सकता। परन्तु मेरी नम्र रायमें उन्हें निपटाने का सबसे अच्छा तरीका होगा आप और जनरल स्मट्समें उनपर पूरी बातचीत। दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नके बारेमें, यदि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय और वाइसराय सच्ची शान्तिका अनभव करना चाहते है तो, हमारे पक्षमें भारत सरकारको अपना पूरा जोर लगाना होगा।

इस पत्रकी एक नकल मुझे भेजनेकी कृपा करें। मेरे पास यहाँ कोई टाइप करनेवाला नहीं है।

आपका,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी नकल (एस० एन० ५९४५ और ५९५४) की फोटो-नकलसे।

१. देखिए " पत्र गृह-सचिवको", पृष्ठ १७७-१८० ।