सितम्बर २२, १९१४
यूनाइटेड किंगडममें निवास करनेवाले भारतीय विद्यार्थियोंने देशकी प्रतिरक्षा के लिए देश में और विदेशों में भेजी जानेवाली सैनिक सेवाओं सक्रिय रूपसे हाथ बँटानेकी अपनी इच्छा व्यापक तौरपर व्यक्त की है। उसे देखते हुए ही, “रेड क्रॉस सोसाइटी" की देख- रेखम एक 'फील्ड एम्बुलेन्स ट्रेनिंग कोर' का संगठन करने और उस दलके सदस्योंको पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने पर यूरोप में तैनात भारतीय सेना के साथ काम करनेका अवसर देनेका निर्णय किया गया है। प्रारम्भिक तौरपर दल (कोर) का एक दस्ता लन्दन में संगठित किया जा चुका है और डॉ० जेम्स कैन्टलीकी देखरेख में कुछ सप्ताह तक उससे ड्रिल कराई गई है और प्रशिक्षित किया जा चुका है। अब युद्ध कार्या- लय और 'लन्दन यूनीवर्सिटी ऑफिसर्स ट्रेनिंग कोर 'के अधिकारियोंके सहयोग से इस प्रारम्भिक दस्तेके सदस्योंकी संख्या बढ़ाने और उसे एक अत्यन्त ही सुसंगठित 'कोर 'के रूपमें विकसित करनेके लिए कदम उठाये जा रहे हैं। भारत सरकारने इसकी इजाजत दे दी है और “इंडियन मेडिकल सर्विस" के [ निवृत्त ] लेफ्टिनेंट कमाण्डर बेकर इस कोरके कमाण्डर बननेके लिये तैयार हो गये हैं।
इसमें शामिल होनेके इच्छुक भारतीय सज्जनोंको अविलम्ब ही अपने नाम 'इंडियन वालन्टियर कमिटी, ६०, टाल्बोट रोड, बेज़वाटर, लन्दनके पतेपर भेज देने चाहिए ।
वैसे तो यह 'कोर' मुख्यतः लन्दन-निवासियों के लिए बनाई गई है पर अन्य नगरोंके भारतीय विद्यार्थी भी यदि चाहें तो इसमें शामिल किये जा सकते हैं। वैसे तो शिक्षण पाने और सेवा करने के इच्छुक सभी व्यक्ति इसमें उपयोगी होंगे किन्तु चिकित्सीय शिक्षण प्राप्त लोग इसमें विशेष उपयोगी होंगे। प्राथियोंको 'इंडियन फील्ड एम्बुलेंस ट्रेनिंग कोर' का सदस्य बननके लिए कहा जायेगा और 'मेडिकल बोर्ड' उनकी शारीरिक सक्षमताकी जाँच करेगा। उसमें पास होने के बाद उनको लन्दन में लगभग रोज ही किसी ऐसे समय, जो उनके दैनिक काम-काज या अध्ययनमें आड़े न आये घन्टे भर प्रशिक्षित प्रशिक्षकोंकी देखरेख में कवायद (ड्रिल) करनी पड़ेगी और हर सप्ताहान्त में शुक्रवारकी रातसे लेकर सोमवारकी सुबह तक आगेके प्रशिक्षणके लिए सामूहिक रूपसे लन्दन से बाहर जाकर शिविर लगाने पड़ेंगे। ऐसे शिविरोंके लिए लन्दनसे आसानीके साथ आ-जा सकने योग्य एक मैदान लन्दनसे बाहर 'कोर' को दे दिया जायगा और वदियाँ तथा साज-सज्जा खरीद ली जायेगी। प्रशिक्षणके दौरान काफी कड़ी मेहनत से
१. इस छेखका मूल शीर्षक था--"इंडियन फील्ड एम्बुलेन्स ट्रेनिंग कोर" । इसका मसविदा गांधीजी और श्री मैकेटने तैयार किया था; देखिए "पत्र : सी० रॉबर्ट्सको", पृष्ठ ५३४-३५ ।