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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

महान् और बहुमूल्य सहायताके लिए दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी ओरसे धन्यवाद भी देना चाहता हूँ। मैं किसी विशेष व्यक्तिका उल्लेख नहीं करना चाहता, परन्तु उन बहुतसे ट्रान्सवाली निर्वासितोंके, जो १९०९ में मद्रासमें थे, प्रतिनिधिके रूपमें में अपना कर्तव्य समझता हूँ कि श्री नटेसनको उनकी ओरसे हार्दिक धन्यवाद दूं; क्योंकि भारतमें इन निर्वासितोंके निर्वासन-कालमें उन्होंने उनको जरूरतोंका बड़ा ध्यान रखा था । संघके अध्यक्ष और सदस्योंको इस संघर्षमें नैतिक और आर्थिक सहायता पहुँचाने के लिए अपना हार्दिक धन्यवाद देनेके लिए मैं स्वयं उपस्थित हो सका, इस बातकी मुझे बड़ी खुशी है।

[अंग्रेजीसे]

लीडर, २४-६-१९१५

७६. भाषण : बंगलौरमें

मई ८, १९१५

प्यारे देशभाइयो,

जिस समारोहके लिए आपने मुझे आमन्त्रित किया है उसका उद्घाटन करनेसे पहले मैं इतना कहना चाहता हूँ कि इस महान अवसरपर आप लोगोंने मुझे बुलाकर मुझपर बहुत कृपा की है।

जो सुन्दर कविता मैंने अभी सुनी उसमें कहा गया है कि ईश्वर उनके साथ रहता है जिनके वस्त्र धूल-भरे और तार-तार हैं। मेरा ध्यान तुरन्त ही अपने कपड़ोंकी ओर गया और मैंने देखा कि न तो वे धूल-धूसरित हैं और न फटे हुए। वे बिलकुल बेदाग और साफ हैं। ईश्वर मुझमें नहीं है। इसके साथ और बातें भी होती हैं; मगर हो सकता है मैं उनमें भी पूरा न उतरूँ। और मेरे प्यारे देशवासियो, हो सकता है, आप सब भी पूरे न उतरें। और यदि हम इसपर विचार करें तो हमें उस व्यक्तिका आदरपूर्वक स्मरण करना चाहिए। जिसके चित्रका आज प्रातःकाल अनावरण करनेके लिए आपने मुझसे कहा है। राजनीतिके क्षेत्रमें मैंने अपने आपको उनका शिष्य माना है, वे मेरे राजनीतिक गुरु हैं और यही दावा में भारतीय जनताकी ओरसे भी करता हूँ। यह निर्णय मैंने १८९६ में घोषित किया था और मुझे इस निर्णयके लिए कभी कोई अफसोस नहीं हुआ ।

श्री गोखलेने मुझे यही शिक्षा दी है कि देश-प्रेमका दावा करनेवाला प्रत्येक भार- तीय राजनीतिके क्षेत्रमें सिर्फ बातें न करके ऐसा ठोस काम करके दिखाए, जिससे देशका राजनैतिक जीवन और उसकी संस्थाएँ धर्ममय बन सकें। उन्होंने मेरे सम्पूर्ण जीवनको प्रेरित किया और आज भी प्रेरित कर रहे हैं। और उसीके फलस्वरूप में अपनेको शुद्ध

१. समाज सेवा लीगके अनुरोधपर गवर्नमेंट हाई स्कूलमें श्री गोखलेके चित्रका अनावरण करते हुए।

२. आशय उस प्रसिद्ध गीत (बँगला गीतांजलि, सं० ११९) से है जिसमें कहा गया है : “यह भजन, पूजन, साधन और आराधना रहने दे । यहाँ दरवाजा बन्द करके मन्दिरके एकान्त कोनेमें क्यों बैठा हुआ है ? प्रभु तो धूपमें और वर्षा में वहाँ सबके साथ खड़े हैं । उनके दोनों हाथ मिट्टीसे सने हुए है । "