अहमदाबाद
वैशाख बदी १२ [ जून ९, १९१५ ]
आदरणीय रणछोड़भाई,
मुझे आपका पत्र मिला। आपकी सम्मतिके लिए आभारी हूँ। माँ-बापसे सम्बन्धित भाग लिखा तो बहुत स्पष्टतापूर्वक गया है फिर भी उसमें रद्दोबदल करूंगा। अन्य बातोंके सम्बन्धमें पत्र द्वारा चर्चा करनेके बजाय आशा करता हूँ कि हम जब मिलेंगे तब सब बातें होंगी। मैं जिसे सनातन धर्म मानता हूँ उसका पालन करते हुए अपने प्राणोंकी आहुति दे दूंगा।
मुझे तो गाढ़ा भी चाहिए और हाथ-बुना बारीक कपड़ा भी । इसीलिए वहाँसे और पालनपुरसे भेज देंगे तो अच्छा होगा। करघा और करघेका काम सिखानेवाले जितनी जल्दी भेजे जा सकें उतनी जल्दी भेजें।
मोहनदासके प्रणाम
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यु० २७१८) से तथा (जी० एन० ४११४) की फोटो-नकलसे।
गुरुवार [जून १०, १९१५ को या उसके लगभग]
भाई श्री वीरचन्द,
आपका पत्र मिला। इसके साथ [ आश्रमकी ] योजना भेज रहा हूँ। पढ़कर लौटा दें । कुछ सम्मति देना चाहें तो वह भी लिखें। यदि भावनगरमें कोई ऐसे विद्वान् सज्जन हैं जिन्हें योजनाकी प्रतियाँ भेजना उचित हो तो उनके नाम भी लिख भेजें। भाई दीपचन्द अभी यहीं हैं।
मोहनदास गांधी के वन्देमातरम्
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७०१) से। सौजन्य : प्रमोद वीरचन्द शाह
१. यह “ पत्र : रणछोड़लाल पटवारीको", ५-६-१९१५ के बाद लिखा गया।
२. पत्र में आश्रमकी योजनाका उल्लेख होनेसे यह पत्र उसी समय लिखा गया जान पड़ता है जिस समय "पत्र : रणछोदलाल पटवारीको ”, ५-६-१९१५ और "पत्र: पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको ", ८-६-१९१५ लिखे गये थे।
३. वीरचन्द पानाचन्द शाह; जैन विद्वान और दार्शनिक ।