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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दी गई थी। यदि ये लोग सत्याग्रही न होते तो हम उनकी सेवाओंका उपयोग न कर सके होते। किन्तु यह तो हिसाब-किताब रखनेकी बात है। हर हालतमें मुझे इस खर्चका बचाव करना है।

जबतक छगनलाल शारीरिक दृष्टिसे ही असमर्थ न हो जाये तबतक उसका ‘इंडियन ओपिनियन’ से हटना अशुभ लक्षण है। फिर भी मुझे नाराज नहीं होना चाहिए। तुम लोग वहाँ मौकेपर हो; अतः सर्वोत्तम क्या है यह तो तुम्हीं जानते हो। हम जिन आदर्शोंपर चल रहे हैं वे तो हम सभीके समान आदर्श हैं और तुम अपने तरीकेके अनुसार ही चलोगे। फीनिक्सका न्यास इसीलिए बनाया गया है। मैं तो इतनी दूर हूँ, केवल सलाह ही दे सकता हूँ।

हिसाबकी जाँच कराने में यदि ज्यादा खर्च होता है तो वह बेकार है। हमारी बहियोंमें सब लेन-देन दर्ज है। बैंकमें जमा रकमसे प्रकट है कि कोष आदिमें से कितना रुपया बचा है। फिर भी इस मामले में क्या करना चाहिए, यह भली-भाँति तुम्हीं जानते हो।

मैं जब रुपयेको संभाल ही नहीं रहा हूँ तब श्री रुस्तमजीकी चेतावनी अनावश्यक है। फीनिक्सके रुपये के सम्बन्धमें न्यासी हैं ही और वे योजना बनानेवालोंकी मंजूरी लेकर आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।

तुम्हारे उठाये मुद्दे अब खत्म हो गये। श्री पोलकके लिए निर्धारित राशि तबतक रखी जाये जबतक स्वयं उन्हें ऐसा न लगे कि वे इसके बिना काम चला सकते हैं।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४२०) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: ए० एच० वेस्ट

 

१२३. भाषण: भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंके सम्बन्ध में[१]

अक्तूबर २८, १९१५

श्रोताओंने बड़ी हर्ष-ध्वनिके साथ श्री गांधीका अभिनन्दन किया। श्री गांधीने कहा: गिरमिटिया मजदूरोंका प्रश्न इस समय बहुत ही सामयिक है, क्योंकि भारतके सच्चे और वास्तविक मित्र――सर्वश्री एन्ड्रयूज और पियर्सन फीजीम एक सर्वेक्षण[२]कर रहे हैं। इस समय फीजी द्वीपोंमें ही गिरमिटिया भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। सर्वप्रथम इस प्रश्नके बारेमें भारतीयोंकी दिलचस्पी जाग्रत करनेका श्रेय सर्वश्री ऐन्ड्रयूज और पियर्सनको नहीं बल्कि दिवंगत राजनीतिज्ञ श्री गोखलेको ही है;

  1. १. एम्पायर थियेटर में जिला कांग्रेस कमेटीके तत्त्वावधानमें; सभाकी अध्यक्षता सर इब्राहीम रहीमतुल्लाने की थी।
  2. २. फोजीमें गिरमिटिया श्रम सम्बन्धी उनके प्रतिवेदनमें इसके निष्कर्ष प्रकाशित हुए थे।