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पत्र: ए० एच० वेस्टको

  फकीरीको[१] अहमदाबाद नहीं सुहाता। उसकी सार-सँभाल तो होनी ही चाहिए, इसलिए उसको कहाँ रखा जाये, यह विचार उठा। मुझे सूरतका अशक्ताश्रम बहुत अच्छा जान पड़ा, इसलिए उसको वहाँ रखा है। आज उसका पत्र आया है। वह लिखता है कि अभी तबीयत ठीक नहीं रहती।

मणिलाल चंचीको राजकोट छोड़ने गया है। उसकी माँकी इच्छा थी कि वह कलकत्ते जानेसे पहले उसे कुछ दिन राजकोट में रखे। काका[२] यहीं हैं। रेवाशंकर[३] अपनी पत्नीको लेने गया है। मगनभाई[४] आज ही अपने लड़केकी व्यवस्था करने धर्मज गये हैं। दो नये सदस्य आश्रममें आये हैं। यह तय किया गया है कि एक वर्ष तक नये छात्र भर्ती न किये जायें। अन्नाकी[५] आशा छोड़ देना ही उचित है। दोनों नये सदस्य बड़ी आयुके हैं।

यहाँके लिए एक तमिल-शिक्षककी तलाश करना। वेतन देंगे। यदि वे चाहें तो आश्रमसे बाहर रह सकते हैं। रहन-सहन सादा होना चाहिए। गुरुकुलका सब कुछ पूरा हो चुकनेपर ही वहाँकी स्थितिका अन्दाज़ लगेगा।

बापूके आशीर्वाद

किचिन[६] ने आत्महत्या कर ली है। इसके पीछे कारण था आर्थिक हानि।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९०) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी।

 

१२५. पत्र: ए० एच० वेस्टको

अहमदाबाद,
अक्तूबर ३१, [१९१५][७]

प्रिय वेस्ट,

मुझे तुम्हारा आरोप-पत्र मिला। यदि तुम्हीं खुलकर न कहोगे तो कौन कहेगा? मैं तुम्हारी मैत्रीको केवल इसीलिए मूल्यवान् मानता हूँ कि तुम सदा वही बात कहते हो जो तुम्हारे मनमें होती है।

  1. १. नायडू
  2. २. कालेलकर
  3. ३. सोदा
  4. ४. पटेल
  5. ५. हरिहर शर्मा
  6. ६. हर्बर्ट किचिन, इंडियन ओपिनियनके संस्थापकोंमें से एक; ये थियोसोफिस्ट थे। उन्होंने श्री नाजरकी अकाल मृत्युके बाद इंडियन ओपिनियनका सम्पादन किया था। वे कुछ समय तक गांधीजीके साथ रहे थे और बोअर-युद्ध में उन्होंने गांधीजीके साथ काम भी किया था। देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३५२
  7. ७. वेस्टको छगनलालके सम्बन्धमें दिये गये तारके उल्लेखसे यह पत्र १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है।