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१२७. पत्र: ए० एच० वेस्टको

अहमदाबाद
नवम्बर ५, १९१५

प्रिय वेस्ट,

मैं यह जिक्र करना भूल गया कि वलिअम्मा-भवनका विचार त्याग देना पड़ा है। मैंने देखा कि समितिको[१] यह विचार पसन्द नहीं है। यदि मैंने आग्रह किया होता तो वह उसे मंजूर कर लेती; किन्तु मैंने वहाँके भारतीय समाजकी अवस्था देखते हुए इसपर विशेष रूपसे आग्रह नहीं किया।

छगनलालके बारेमें तुम्हारा तार[२] मिल गया। अभी हालमें छगनलालके जो पत्र मिले हैं वे चौंकानेवाले हैं। मैंने अनुभव किया कि यदि उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता तो यही अच्छा है कि उसे यहाँ भेज दिया जाये। उसने अपने पिछले पत्रमें लिखा है: “स्वस्थ होते हुए भी मैं मुक्त किया जा सकता हूँ, इतना ही नहीं, मेरे निवृत्त होनेसे राहत मिलेगी।” यदि वह मुक्त किया जा सकता हो तो उसे यहाँ भेज दिया जाये।

यदि तुम्हें यहाँसे सहायक चाहिए तो में लगभग ३ मास बाद भेज दूँगा।

मैंने यह तार[३]भी दिया था कि हिसाबकी जाँच करनेकी जरूरत नहीं है। अब विशेष रूपसे जाँच कराने से कुछ लाभ नहीं हो सकता। यदि हम यह तय करें कि लोगोंसे बिलकुल रुपया न लेंगे तो हमारी बहियाँ सीधी-सादी ही होंगी। तब तुम्हें ‘इंडियन ओपिनियन’ से और पुस्तकोंकी बिक्रीसे होनेवाले आय और खर्च दिखाने होंगे। पोलकके लिए जो रुपया छोड़ा गया है, वह उन्हींके लिए निर्धारित किया जा चुका है। यदि उसे तुम सँभालना नहीं चाहते तो वह अब यहाँ भेजा जा सकता है। किन्तु मुझे आशा है कि तुम सब लोग इस रकमके निर्धारणको आवश्यक समझोगे।

वलिअम्मा भवनकी भूमि रख ली जाये या बेच दी जाये; और उसका रुपया यहाँ भेज दिया जाये।

मगनलाल अपना तमिलका अध्ययन समाप्त करनेके लिए मद्रास गया है। उसकी पत्नी भी साथ गई है और फकीरी नायडू भी।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४२२) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: ए० एच० वेस्ट।

  1. १. दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कोषकी समिति, देखिए “पत्र: जे० बी० पेटिटकी”, १६-६-१९१५।
  2. २. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. ३. उपलब्ध नहीं है।